प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करते समय विषय इतिहास में अगर आप हड़प्पा संस्कृति को नहीं समझते तो आप की तैयारी पूर्ण नहीं है। परीक्षा में प्राचीन भारत के इतिहास पर आपसे हड़प्पा संस्कृति से जुड़े सवाल पूछे जा सकते हैं।


प्राचीन भारत का इतिहास हड़प्पा संस्कृति की विशेषताएं technical prajapati
प्राचीन भारत का इतिहास हड़प्पा संस्कृति

नमस्कार दोस्तों,
फ्रेंड्स, इस संस्कृति के पहले अवशेष हड़प्पा में पाए गए। इसीलिए यह खोजी गई नई संस्कृति को हड़प्पा संस्कृति कहा जाता है। मुख्य रूप से यह संस्कृति सिंधु नदी क्षेत्र में केंद्रित है। इसीलिए इसे सिंधु संस्कृति के रूप में भी जाना जाता है। आज की इस पोस्ट में हम आपके सामने हड़प्पा संस्कृति से जुड़े महत्वपूर्ण जानकारियां सांझा करने वाले हैं।

प्राचीन भारत का इतिहास: हड़प्पा संस्कृति

काल:

शोधकर्ताओं के अनुसार यह संस्कृति 5000 साल पहले की है तथा इसे ताम्र युग माना जाता है। 3500 ईसा पूर्व से 2600 ईसा पूर्व की अवधि प्रारंभिक हड़प्पा संस्कृति का और 2600 ई.पू से 2800 ई.पू तक का समय परिपक्व हड़प्पा संस्कृति से था।

संस्कृति की खोज:

इसवी सन 1920 लाहौर-मुल्तान रेलवे मार्ग के कार्यों के दौरान कुछ प्राचीन ईटों के अवशेष खोजे गए। 1921 में दयाराम साहनी ने सिंधु संस्कृति के अस्तित्व की खोज की। उसी वर्ष हड़प्पा पंजाब में प्रायोगिक खुदाई हुई। राखालदास बॅनर्जी इन्होंने मोहनजोदड़ो की खोज की। इसी कारण पुरातत्व विभाग ने सर जॉन मार्शल की अगुवाई में बड़े पैमाने पर उत्खनन शुरू किया, और एक प्राचीन सभ्यता का पता चला। इसी प्रकार के संस्कृति के अवशेष पश्चिम भारत में कालीबंगन, धोळावीरा, सुरकोटडा, लोथल, दायमाबाद आदि जगहों पर बड़ी संख्या में पाए गए।

✔ कालक्रम के अनुसार काल:

'कार्बन -14' विधि के अनुसार इस संस्कृति के कोटादिजी, हड़प्पा, लोथल आदि जगहों की अवधि तय की गई है। इसी के अनुसरण में, मोहनजोदड़ो और हड़प्पा इसी के साथ मध्य पूर्व में मेसोपोटामिया में पाए गए कुछ अवशेषों का तुलनात्मक अध्ययन तथा अब तक की खुदाई से सिंधु सभ्यता के कुल 3 काल हैं।
  1. सिंधु घाटी (3200 - 2600 ईसा पूर्व)
  2. नागरी सिंधु (2600 - 2000 ईसा पूर्व)
  3. उत्तर सिंधु (ईसा पूर्व 2000 - 1500)

शुरुआत और अंत:

सिंधु घाटी काल के स्थल सिंध से अधिकतर सरस्वती की घाटी में है। नागरी सिंधु काल के साक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए, इस अवधि के दौरान तेजी से सांस्कृतिक परिवर्तन हुए और उत्तर सिंधु काल में सिंधु संस्कृति का अंत होने की शुरुआत हो गई।


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प्राचीन भारत का इतिहास: हड़प्पा संस्कृति की विशेषताएं

नगर रचना:

हड़प्पा संस्कृति की नगर रचना और वास्तुकला बहुत उन्नत थी। हड़प्पा संस्कृति की उन्नत वास्तुकला का विचार घर, किलेबंदी, सीवेज सिस्टम, बाथरूम, खलिहान, गोदी जैसे कारकों को देखकर किया जा सकता है। हड़प्पा कालीन नगरों को प्रशासनिक भवनों और जनसंख्या में विभाजित किया गया था। शहर की आबादी का हिस्सा शतरंज की बिसात या जाली जैसे विभिन्न प्रभागों में विभाजित किया गया था। नगर रचना के लिए इस्तेमाल की गई ईंटें लगभग 4: 2: 1 (लंबाई: चौड़ाई: ऊंचाई) थीं।

मकान:

हड़प्पा संस्कृति में प्रत्येक प्रभाग में लगभग 20 से 30 घर थे। यह सभी घर ठोस ईंटो से बने हुए तथा विशाल थे। यहाँ के हर घर में एक स्नानगृह तथा कुछ घरों के पीछे कुए पाए गए हैं। जैसे कि आज भारत के महलों और अन्य पारंपरिक घरों में घर के केंद्र में आंगन होता है, बिलकुल वैसे ही उस समय भी पाया गया। मकान एक या दो मंजिला ऊँचे थे।

तटरेखा:

हड़प्पा के शहरों की एक सुरक्षात्मक तटरेखा थी। तटरेखा चौड़ी तथा इसका निर्माण ठोस ईंटो से किया गया था। तटरेखा एक मीनार थी। इससे हड़प्पा संस्कृति ने शहर की सुरक्षा पर ध्यान दिया था, यह समझ आता है।

सड़कें: 

शहर क्षेत्र से गुजरने वाली सड़कें मुख्य सड़कों से जुड़ी हुई थीं। चौराहों पर सड़कें काफी चौड़ी थीं। सड़क के किनारे पाए जाने वाले लकड़ी के अवशेषों से यह पता लगाया जा सकता है की सड़कों पर प्रकाश व्यवस्था की गई थी।

अपशिष्ट जल प्रणाली: 

हड़प्पा संस्कृति में गाँव के बाहर अपशिष्ट जल और बारिश के पानी को ले जाने के लिए एक मीटर गहरी भूमिगत प्रणाली थी। इसे ईंट और पत्थर से बनाया गया था। हड़प्पा संस्कृति किसी भी समकालीन संस्कृति में नहीं पाए गए अपशिष्ट जल की प्रणाली में पाई जाती है।

बाथरूम:

मोहनजोदडो में एक सार्वजनिक बाथरूम था। यहाँ एक शानदार स्नानघर के अवशेष पाए गए। इस बाथरूम की लंबाई 12 मीटर, चौड़ाई 7 मीटर और गहराई 2.5 मीटर है। इसकी बाहरी दीवारें 7 से 8 फीट चौड़ी थीं। इसी के साथ कपड़े बदलने के लिए अलग कमरे की व्यवस्था की गई थी। बाथरूम में उपयोग किए गए पानी को छोड़ने और शुद्ध पानी अंदर लाने की व्यवस्था बाथरूम में की गई थी। इससे पता चलता है कि हड़प्पा संस्कृति में दो अपने स्वास्थ्य को लेकर कितने जागरूक थे।

सामाजिक संरचना: 

हड़प्पा संस्कृति में परिवार महत्वपूर्ण था। शहर के खंडहरों से, समाज में शासकों, व्यापारियों और जनरलों का एक वर्ग प्रतीत होता था। कृषि यह मुख्य आधार इस समाज का था क्योंकि यह संस्कृति नदियों के साथ उपजाऊ क्षेत्रों में विकसित हुई थी।

वेशभूषा-केशभूषा:

हड़प्पा संस्कृति में मिट्टी के बर्तनों पर पाए गए कपड़ों के निशान, मृण्मयमूर्ती पर दिखाए गए वस्त्र, खुदाई के दौरान मिली विभिन्न आकृतियों की सुई इससे यह लोग पोशाक के बारे में जागरूक थे, यह पता लगाया जा सकता है। इसी प्रकार तत्कालीन मूर्तियों से केसभूषा की भी जानकारी प्राप्त की जा सकती है।  की यहां के पुरुष दाढ़ी करते थे तथा महिलाएं विभिन्न प्रकार की केशरचना करती थी।

सौंदर्य प्रसाधन:

हड़प्पा संस्कृति की खुदाई में एक श्रृंगारपेटी मिली। जिसमे हस्ती दंत कंघी, दर्पण, बालों को संवारने के लिए चिमटा, पिन, होंठ और भौहों को रंगने के लिए विभिन्न रंगों साधन प्राप्त हुए। हड़प्पा के लोग आभूषणों से उतना ही प्यार करते थे, जितना कि सौंदर्य प्रसाधन से। उत्खनन में मोतियों और सोने के हार, कंगन, अंगूठी, मोतियों, कमरबंद, आदि के साथ-साथ नर्तकी की कांस्य प्रतिमा भी मिली।

मनोरंजन उपकरण:

हड़प्पा के लोगों के गीत, पासा यह मनोरंजन के साधन थे। नृत्य, गायन, शिकार और पशुओं की लड़ाई आदि से मनोरंजन किया होता था। छोटे बच्चों के लिए जलाई हुई मिट्टी से खिलौने बनाए जाते थे। इनमें बैल, बैल गाड़ी, पंछियों के आकार के सिटी, झुनझुना आदि खिलोनो का समावेश था।

धर्मकल्पना:

इस संस्कृति के लोगो का मुख्य उपजीविका साधन खेती होने के कारण यह लोग भू माता को मातृदेवता मानते थे। उनके धार्मिक जीवन में प्रकृति को महत्वपूर्ण स्थान था। वह सूर्य, जल, अग्नि तथा वृक्षों की पूजा करते थे। कालीबंगन से प्राप्त हुए अग्निकुंड से यह पता लगाया जा सकता है कि यहां के लोग अग्नि पूजा करते थे। निसर्ग देवता के साथ-साथ यह पशुपति, नाग, वृषभ यानी बैल की भी पूजा करते थे। यहां के लोग मूर्तिपूजक थे, लेकिन इसके बावजूद भी हड़प्पा संस्कृति में कोई मंदिर नहीं मिला। यह लोग शव को विधिपूर्वक दफन करते तथा दफनाने के दौरान उनके साथ गहने और बर्तन भी रखते थे।

आहार:

यहां के लोगों का मुख्य आहार गेहूं था। इसके अलावा जौ, तिल, मटर जैसी फसलें भी उगाते थे। इसके अलावा खजूर का उपयोग भी यहां के लोग भोजन के रूप में करते थे। सबूतों से पता चला है कि यहां के लोग दूध के लिए जनावर भी पालते थे।

खिलौने: 

बच्चों के खिलौने में हाथी, विभिन्न जानवर और पहिए वाली मिट्टी की गाड़ियां आदि पाए गए। इसलिए यह तर्क दिया जाता है कि ऐसे वाहनों का वास्तव में उपयोग किया जाता होगा।

वज़न और माप:

यहां के लोग कई तरह के वजन का उपयोग करते थे। इसमें रस्सी के तराजू से लेकर सुनार द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले छोटे तराजू तक सब कुछ शामिल था। वजन का माप 16 गुना आकार का था। 0.8565 सबसे हल्का वज़न और 274.938 अधिकतम था।

घरेलू उपकरण:

कुम्हार के चाक पर बनाए गए सुंदर मिट्टी के बर्तन यहां पाए गए। जिनपर नक्षीकाम किया गया था। इसके अलावा तांबा, कांस्य और चांदी के बर्तन भी पाए गए। लेकिन इनका पैमाना छोटा था।

जहाज डॉक:

लोथल की खुदाई में एक विशाल डॉक के अवशेष मिले। इस डॉक की लंबाई 270 मीटर और चौड़ाई 37 मीटर है। इस डॉक से यह प्रतीत होता है कि इस संस्कृति के लोगों को जहाज निर्माण, व्यापार तथा व्यापार मार्गों की जानकारी प्राप्त थी। यहां से प्राप्त हुए एक मुद्रा पर जहाज की तस्वीर बनाई हुई है। इसी के साथ लोथल में पाई गई अनाज की कोशिका भी ठोस ईंट से बनी हैं। यह कृषि और व्यापार में उनकी प्रगति को दर्शाता है।

***तो दोस्तों अब आपको प्राचीन भारत का इतिहास हड़प्पा संस्कृति और हड़प्पा संस्कृति की विशेषताएं आदि के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हो गई है।

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