ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार - Technical Prajapati |
ज्ञानपीठ पुरस्कार
दोस्तों जैसे कि हमने जाना कि - यह पुरस्कार भारतीय ज्ञानपीठ न्यास द्वारा भारतीय साहित्य के लिए दिया जाता है, जो भारतीय साहित्य में दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है। इस पुरस्कार के लिए भारत का कोई भी नागरिक जो आठवीं अनुसूची में बताई गई 22 भाषा तथा अंग्रेजी इनमें से किसी भी भाषा में अगर लिखता हो, तो वह इस पुरस्कार के लिए योग्य होता है। इस पुरस्कार में ₹11 लाख की धनराशि + प्रशस्ति पत्र + वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा दी जाती है।
दोस्तों अब तक [2019] कुल 60 व्यक्तियों को ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। लेकिन इस पुरस्कार का जन्म कैसे हुआ? आइए आपको बताते हैं।
दोस्तों, 22 मई 1961 को भारतीय ज्ञानपीठ के संस्थापक श्री साहू शांति प्रसाद जैन का 50वां जन्म दिवस था। इस शुभ अवसर पर उनके परिवार के सदस्यों के मन में यह विचार आया कि - क्यों ना साहित्यिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ऐसा महत्वपूर्ण कार्य किया जाए, जो राष्ट्रीय गौरव तथा अंतरराष्ट्रीय प्रतिमान के जैसा हो। इसी विचार के साथ 16 सितंबर 1961 को भारतीय ज्ञानपीठ के संस्थापक अध्यक्ष श्रीमती रमा जैन ने न्यास की एक गोष्ठी में इस पुरस्कार का प्रस्ताव रखा।
दिल्ली में 2 अप्रैल 1962 को भारतीय ज्ञानपीठ और टाइम्स ऑफ इंडिया के संयुक्त तत्वावधान में देश की सभी भाषाओं के 300 विद्वानों ने एक गोष्ठी में इस विषय पर विचार किया। इस गोष्ठी के दो सत्रों की अध्यक्षता श्री भगवती चरण वर्मा तथा डॉ. वी. राघवन ने की और इसका संचालन डॉ. धर्मवीर भारती ने किया। इस गोष्ठी में अनेक प्रख्यात विद्वानों ने भाग लिया था। जिनमें काका कालेलकर, हरेकृष्ण मेहताब, निसीम इजेकिल, डॉ. सुनीति कुमार चैटर्जी, डॉ. मुल्कराज आनंद, सुरेंद्र मोहंती, देवेश दास, सियारामशरण गुप्त, रामधारी सिंह दिनकर, उदयशंकर भट्ट, जगदीशचंद्र माथुर, डॉ. नगेन्द्र, डॉ. बी.आर.बेंद्रे, जैनेंद्र कुमार, मन्मथनाथ गुप्त, लक्ष्मीचंद्र जैन आदि शामिल थे।
दोस्तों, इस पुरस्कार का स्वरूप कैसा होगा? इसे तय करने के लिए अनेक गोष्ठियां होती रही और अंत में 1965 को पहले ज्ञानपीठ पुरस्कार देने का निर्णय लिया गया। 1965 में ₹1 लाख की पुरस्कार राशि से इस पुरस्कार का प्रारंभ हुआ। जिसे 2005 में ₹7 लाख कर दिया गया तथा वर्तमान में [साल 2012 से] इस पुरस्कार के लिए पुरस्कार राशि ₹11 लाख दिए जाते हैं।
- जी शंकर कुरूप मलयाली भाषा के कवि जिन्हें उनकी कृति ओटक्कुष़ल (वंशी) के लिए 1965 में पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। पुरस्कार के तौर पर ₹100000 की राशि प्राप्त करने वाले यह पहले ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्तकर्ता हैं।
- 2005 में चुने गए हिंदी साहित्यकार कुंवर नारायण पहले व्यक्ति थे, जिन्हें ₹700000 का ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।
- 2012 में तेलुगु भाषा के साहित्यकार रावुरी भारद्वाज वह पहले व्यक्ति थे, जिन्हें ₹1100000 का ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।
दोस्तों इस बात को हमेशा याद रखें कि जब ज्ञानपीठ पुरस्कार की शुरुआत की गई थी, तब किसी भी लेखक या कवि के एकल कृति के लिए इस पुरस्कार को प्रदान किया जाता था। ऐसा 1965 से 1982 तक चलता रहा। इस पुरस्कार के लिए महत्वपूर्ण बात यह थी कि जिस भाषा के साहित्यकार को एक बार पुरस्कार मिल जाता है उस पर अगले 3 वर्ष तक कोई भी विचार नहीं किया जाता था। लेकिन, भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार के 28वें संशोधन के बाद 1983 से इस पुरस्कार को किसी भी लेखक या कवि के भारतीय साहित्य में दिए गए संपूर्ण योगदान के लिए दिया जाने लगा। ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेताओं की सूची 1965 से 2020 ⇐ इस लिंक पर क्लिक करके आप ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेताओं की सूची देख सकते हैं।
2019 तक ज्ञानपीठ पुरस्कार को प्राप्त कर चुकी भाषाएँ :
- हिंदी भाषा के लिए सबसे अधिक 11 व्यक्तियों ने इस पुरस्कार को प्राप्त किया।
- कन्नड़ भाषा के लिए 8 व्यक्तियों को यह पुरस्कार प्राप्त हुआ है।
- बांग्ला तथा मलयालम भाषा के लिए 6-6 व्यक्तियों को यह पुरस्कार प्राप्त हुआ है।
- मराठी, गुजराती, उर्दू तथा ओरिया भाषा के लिए 4-4 व्यक्तियों को यह पुरस्कार प्राप्त हुआ है।
- तेलुगु भाषा के लिए 3 व्यक्तियों को यह पुरस्कार प्राप्त हुआ है।
- असमिया, पंजाबी तथा तामिल भाषा के लिए 2-2 व्यक्तियों को यह पुरस्कार प्राप्त हुआ है।
- संस्कृत, कोंकणी, कश्मीरी तथा अंग्रेजी भाषा के लिए अब तक कुल 1-1 पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।
1965 से 2019 तक इस पुरस्कार को पांच बार संयुक्त रूप से दिया गया है। जिनमें 1967, 1973, 1999, 2006 और 2009 यह वर्ष शामिल हैं। आइए दोस्तों, अब हम जानते हैं कि ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए चयन प्रक्रिया कैसे होती है?
ज्ञानपीठ पुरस्कार - चयन प्रक्रिया
दोस्तों इस पुरस्कार के लिए चयन प्रक्रिया काफी उलझन भरी होती है और यह कई महीनों तक चलती है। विभिन्न भाषाओं के साहित्यकारों, अध्यापकों, समालोचकों, प्रबुद्ध पाठकों, विश्वविद्यालयों, साहित्यिक तथा भाषायी संस्थाओं से प्रस्ताव होने के साथ इस चयन प्रक्रिया का आरंभ होता है।
ज्ञानपीठ पुरस्कार के नियम के अनुसार - जिस भाषा के साहित्यकार को एक बार यह पुरस्कार प्राप्त हो जाता है, उस पर अगले 3 वर्ष तक कोई भी विचार नहीं किया जाता।
इस चयन प्रक्रिया के लिए - हर भाषा की एक परामर्श समिति होती है। जिसमें तीन विख्यात साहित्यिक समालोचक और विद्वान सदस्य शामिल होते हैं। ज्ञानपीठ पुरस्कार चयन प्रक्रिया में जो परामर्श समितियां होती है - उनका गठन तीन-तीन वर्ष के लिए होता है। प्राप्त हुए सभी प्रस्ताव संबंधित भाषा परामर्श समिति द्वारा जाँचे जाते हैं। भाषा समितियों पर यह प्रतिबंध नहीं होता कि वह अपने विचार विमर्ष प्राप्त प्रस्तावों तक ही सीमित रखें। उन्हें किसी भी लेखक पर विचार करने की स्वतंत्रता होती है।
भारतीय ज्ञानपीठ न्यास, परामर्श समिति से यह अपेक्षा रखती है कि - संबंध भाषा का कोई भी पुरस्कार योग्य साहित्यकार विचार परिधि से बाहर ना रह जाए। किसी साहित्यकार पर विचार करते समय भाषा समिति उसके संपूर्ण कृतित्व का मूल्यांकन करती है और उन्हें ऐसा करना ही होता है। साथ ही समसामयिक भारतीय साहित्य की पृष्ठभूमि में भी उनको रखना होता है।
भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार के 28वें पुरस्कार नियम में किए गए संशोधन के अनुसार - पुरस्कार वर्ष को छोड़कर पिछले 20 वर्ष की अवधि में प्रकाशित कृतियों के आधार पर लेखक का मूल्यांकन किया जाता है।
भाषा परामर्श समिति अपनी सिफारिशें प्रवर परिषद के समक्ष प्रस्तुत करती हैं। प्रवर परिषद में कम से कम 7 और अधिक से अधिक 11 ऐसे सदस्य होते हैं जिनकी ख्याति और विश्वसनीयता उच्च कोटि की होती है। दोस्तों आपको बता दें की - पहली प्रवर परिषद का गठन भारतीय ज्ञानपीठ के न्यास मंडल द्वारा किया गया था। इसके बाद इन सदस्यों की नियुक्ति परिषद की सिफारिशों पर होती है। प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 3 वर्ष का होता है, लेकिन उसे दो बार और बढ़ाया जा सकता है।
प्रवर परिषद, भाषा परामर्श समितियों की सिफारिशों का तुलनात्मक मूल्यांकन करती है। प्रवर परिषद गवर्नर चिंतन और पर्यालोचन के बाद ही पुरस्कार के लिए साहित्यकार का अंतिम चयन करती है। भारतीय ज्ञानपीठ के न्यास मंडल का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं होता।
तो दोस्तों इस प्रकार ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए साहित्यकारों का चयन किया जाता है। आइए दोस्तों, अब हम आपको ज्ञानपीठ पुरस्कार में प्रतीक स्वरूप दी जाने वाली वाग्देवी का कांस्य प्रतिमा के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं।
ज्ञानपीठ पुरस्कार - वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा
दोस्तों जब किसी साहित्यकार को ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया जाता है तो - प्रतीक स्वरूप वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा दी जाती है। यह प्रतिमा मूलतः धार, मालवा के सरस्वती मंदिर में स्थित प्रतिमा की अनुकृति है। आपको बता दें इस मंदिर की स्थापना - विद्याव्यसनी राजा भोज ने इसवी 1035 में की थी और फिलहाल यह प्रतिमा ब्रिटिश म्यूजियम लंदन में है। वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा आप नीचे दिए गए चित्र में देख सकते हैं।
भारतीय ज्ञानपीठ ने साहित्य पुरस्कार के प्रतीक के रूप में इसको ग्रहण करते समय शिरोभाग के पार्श्व में प्रभामंडल सम्मिलित किया है। इस प्रभामंडल में तीन रश्मिपुंज हैं जो भारत के प्राचीनतम जैन तोरण द्वार (कंकाली टीला, मथुरा) के रत्नत्रय को निरूपित करते हैं। हाथ में कमंडलु, पुस्तक, कमल और अक्षमाला ज्ञान तथा आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि के प्रतीक हैं। वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा के बारे में जानने के बाद आइए आपको - ज्ञानपीठ पुरस्कार के वर्तमान के [2020] प्रवर परिषद के सदस्यों की सूची से रूबरू कराते हैं।
ज्ञानपीठ पुरस्कार - प्रवर परिषद के सदस्य 2020
Sr.No | Member of Select Council 2020 |
---|---|
01 | Smt. Pratibha Ray (Chairperson) |
02 | Snri Madhav Kaushik |
03 | Prof. Shamim Hanfi |
04 | Prof. Suranjan Das |
05 | Prof. Purushothama Billimale |
06 | Dr. S. Mani Valan |
07 | Shri Chandrakant Patil |
08 | Dr. Harish Trivedi |
09 | Shri Prabha Varma |
10 | Dr. Syed Asghar Wajahat |
11 | Shri Madhusudan Anand (Ex Officio) |
हम उम्मीद करते हैं दोस्तों हमारे द्वारा दी गई यह जानकारी आप सभी दोस्तों को बेहद पसंद आई होगी। ज्ञानपीठ पुरस्कार से जुड़े सभी आर्टिकल सूची नीचे दी गई है जिस पर क्लिक करके आप जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। यदि आपको आज हमारे द्वारा दी गई जानकारी पसंद आती है तो - इसे अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर जरूर शेयर करें और हो सके तो कमेंट जरूर करें क्योंकि दोस्तों कमेंट बॉक्स आपका ही है।
Post a Comment
इस आर्टिकल के बारे में आप अपनी राय नीचे कमेंट बॉक्स में दे सकते हैं।