Bhasha Samman Award Complete Information Technical Prajapati |
भाषा सम्मान पुरस्कार - शुरुआत
दोस्तों भारत में साहित्य अकादमी अपने द्वारा मान्य 24 भाषाओं में उत्कृष्ट पुस्तकों तथा उत्कृष्ट अनुवादों के लिए प्रतिवर्ष पुरस्कार प्रदान करती है। लेकिन, फिर भी अकादमी यह महसूस करती है कि - भारत जैसे बहुभाषाई देश जहाँ कई सारी भाषाएं और उपभाषाएं उपलब्ध हैं। उनको भी अपनी गतिविधियों की परिसीमा मान्यता प्राप्त भाषाओं से परे बढ़ानी चाहिए और गैर मान्यता प्राप्त भाषाओं में भी सृजनात्मक साहित्य के साथ-साथ शैक्षिक अनुसंधान को प्रोत्साहित करना चाहिए।यही मूल कारण था की - साहित्य अकादमी द्वारा सन 1996 में भाषा सम्मान पुरस्कार की स्थापना की गई। जैसे कि हमने जाना - इस पुरस्कार को स्थापित करने का मूल उद्देश्य संबंधित भाषाओं के प्रचार, आधुनिकीकरण या उसके संवर्धन के लिए महत्वपूर्ण योगदान देने वाले लेखकों, विद्वानों, संपादकों, संग्रहकर्ताओं, प्रस्तोताओं या अनुवादकों को विभूषित करना है।
भाषा सम्मान का इतिहास
सन 1996 में साहित्य अकादमी द्वारा भाषा सम्मान पुरस्कार प्रदान किया गया। इस पुरस्कार को ग्रहण करने वालों में -- श्री. धरीक्षण मिश्र (भोजपुरी),
- श्री. बंशी राम शर्मा और श्री. एम. आर. ठाकुर (पहाड़ी),
- श्री. के. जतप्पा राय और श्री. मंदार केशव भट्ट (तुलु)
- श्री. चंद्रकांत मुरा सिंह (काकबरोक)
दोस्तों सन 1999 में अकादमी को यह महसूस हुआ कि - यह तो ठीक है कि, उन भाषाओं के लेखकों और विद्वानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। जिन्हें अकादमी से मान्यता प्राप्त नहीं है। लेकिन, इसी के साथ-साथ उन विद्वानों को भी सम्मानित किया जाना चाहिए जिन्होंने कालजयी और मध्यकालीन साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया हो।
अकादमी को यह विचार आने के पीछे कारण यह था कि - उन लेखकों / विद्वानों ने राष्ट्र की धरोहर को जीवंत रखने तथा आने वाली पीढ़ियों को इससे परिचित कराने का प्रयास किया है। इसीलिए वह इस सम्मान के हकदार हैं। अंततः यह निर्णय लिया गया कि 6 वार्षिक भाषा सम्मानों में से 4 ग़ैर-मान्यता प्राप्त भाषाओं तथा 2 सम्मान उन विद्वानों को दिए जाएँगे, जिन्होंने कालजयी और मध्यकालीन साहित्य में योगदान दिया हो।
भाषा सम्मान पुरस्कार
दोस्तों सन 1996 में जब भाषा सम्मान पुरस्कार की स्थापना की गई। तब इस पुरस्कार के अंतर्गत 4 गैर मान्यता प्राप्त भाषाओं में योगदान देने वाले व्यक्तियों को वार्षिक पुरस्कार प्रदान किया जाता था। लेकिन, 1999 से भाषा सम्मान में - कालजयी और मध्यकालीन साहित्य में योगदान देने वाले 2 व्यक्ति तथा गैर मान्यता प्राप्त भाषाओं में योगदान देने वाले 4 व्यक्ति। कुल मिलाकर 6 व्यक्तियों को वार्षिक पुरस्कार प्रदान किया जाने लगा। आइए दोस्तों जानते हैं, इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाले विजेता को पुरस्कार के तौर पर क्या दिया जाता है?भाषा सम्मान पुरस्कार - सम्मान स्वरूप
भाषा सम्मान पुरस्कार प्राप्त करने वाले विजेता को पुरस्कार के रूप में एक फलक और राशि ₹100000/- प्रदान की जाती है। हालांकि, जब सन 1969 में भाषा सम्मान की स्थापना की गई थी। तब इस पुरस्कार के विजेता को ₹25000/- की राशि दी जाती थी। पुरस्कार के तौर पर दी जाने वाली राशि को समय-समय पर बढ़ाया गया है, आइए जानते हैं।- पुरस्कार की शुरुआत सन 1996 में ₹25000/-
- सन 2001 में ₹40000/-
- सन 2003 में ₹50000/-
- सन 2009 में ₹100000/-
भाषा सम्मान पुरस्कार - चयन प्रक्रिया
दोस्तों जैसे कि यह पुरस्कार कालजयी और मध्यकालीन साहित्य और गैर मान्यता प्राप्त भाषाओं में लिखे गए साहित्य इन 2 श्रेणिओं के लिए दिया जाता है। इसीलिए इन दोनों की चयन प्रक्रिया अलग अलग है।कालजयी और मध्यकालीन साहित्य - चयन प्रक्रिया
- कालजयी और मध्यकालीन क्षेत्र में दिए जाने वाले भाषा सम्मान हेतु परामर्श मंडल के सदस्यों से भाषा सम्मान के विचारार्थ लेखकों / विद्वानों के नाम सुझाने का अनुरोध किया जाता है।
- अध्यक्ष, भाषा विकास मंडल द्वारा सुझाए गए पैनल के तीन सदस्यों की एक जूरी का गठन करती है। यह जूरी अनुशंसाओं पर विचार करती है तथा भाषा सम्मान के लिए दो लेखकों / विद्वानों का चयन करती है।
- जूरी के अनुशंसाओं को कार्यकारी मंडल के समक्ष औपचारिक अनुमोदन एवं घोषणा हेतु रखा जाता है।
- भाषा सम्मान की घोषणा के साथ ही जूरी सदस्यों के नाम सार्वजनिक किए जाते हैं।
गैर मान्यता प्राप्त भाषाओं के - साहित्य चयन प्रक्रिया
- भाषाओं को विशिष्ट वर्ष में भाषा सम्मान प्रदान किए जाने का निर्णय भाषा विकास मंडल करती है।
- भाषा विकास मंडल द्वारा सुझाए गए नामों के पैनल में से अध्यक्ष, एक त्रिसदस्यीय जूरी गठित करता है। जो भाषा सम्मान के लिए उपयुक्त लेखकों विद्वानों के नामों की अनुशंसा करता है।
- जूरी की अनुशंसाओं को कार्यकारी मंडल के समक्ष औपचारिक अनुमोदन हेतु रखा जाता है।
- भाषा सम्मान की घोषणा के साथ ही जूरी सदस्यों के नाम सार्वजनिक किए जाते हैं।
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