Armed Forces Flag Day - टेक्निकल प्रजापति |
सशस्त्र सेना झंडा दिवस
दोस्तों खासतौर पर भारत की तीनों सेनाओं में यह दिन विशेष रूप से मनाया जाता है। 23 अगस्त 1947 को केंद्रीय मंत्रिमंडल की रक्षा समिति ने युद्ध दिग्गजों और उनके परिवारजनों के कल्याण के लिए 7 दिसंबर को झंडा दिवस मनाने का फैसला लिया था। समिति ने यह तय किया कि - यह दिन सैनिकों चाहे वह थलसेना के जांबाज हो या फिर नौसेना के या वायुसेना के, सभी सैनिकों के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने का दिन होगा। तब से 7 दिसंबर को हम अपने सैनिकों की सेवा को याद करते हुए इस दिन को मनाते हैं।दोस्तों सन 1949 से प्रतिवर्ष 7 दिसंबर सशस्त्र सेना झंडा दिवस को मनाया जाता है। यह दिन भारतीय सशस्त्र बलों के कर्मियों के कल्याण हेतु भारत की जनता से धन-संग्रह के प्रति समर्पित एक दिन है। इस दिवस पर हुए धन-संग्रह के प्रमुख तीन उद्देश्य है।
- युद्ध के समय हुई जनहानि में सहयोग
- सेना में कार्यरत कर्मियों और उनके परिवार का कल्याण और सहयोग
- सेवानिवृत्त कर्मियों और उनके परिवार का कल्याण
दोस्तों, यदि साफ साफ शब्दों में कहा जाए, तो सशस्त्र झंडा दिवस देश की सुरक्षा में शहीद हुए सैनिकों के परिवार के लोगों के कल्याण के लिए मनाया जाता है। इस दिन झंडे की खरीद से इकट्ठा हुए धन को शहीद सैनिकों के आश्रितों के कल्याण में खर्च किया जाता है।
इस दिवस का उद्देश्य : भारतीय सेना के जवानों का आभार प्रकट करते हुए सेना के लिए धनराशि एकत्र करना है।
कैसे मनाया जाता है, यह दिवस?
दोस्तों जैसे कि हमने जाना सशस्त्र सेना झंडा दिवस भारत के जांबाज सैनिकों व उनके परिजनों के प्रति नागरिक एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए प्रतिवर्ष 7 दिसंबर को मनाया जाता है। इस दिन भारत के हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि - वह 7 दिसंबर को सैनिकों के सम्मान व उनके कल्याण में अपना योगदान दें। इस दिन सेना के जवानों का आभार प्रकट करते हुए सेना के लिए धन एकत्र किया जाता है। इसके लिए लोगों को झंडे का एक स्टीकर दिया जाता है जिसमें लाल, गहरा नीला हल्का नीला रंग होता है। इस झंडे के स्टिकर की कीमत निर्धारित होती है। लोग इस झण्डेवाले स्टिकर को खरीद कर अपने सीने पर लगाते हैं। इस प्रकार वे शहीद या हताहत हुए सैनिकों के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं और जो राशि एकत्रित होती है, उसे झंडा दिवस कोष में जमा कर दिया जाता है।इसके पश्चात जमा हुई राशि का उपयोग युद्धों में शहीद हुए सैनिकों के परिवार या हताहत हुए सैनिकों के कल्याण को पुनर्वास में खर्च की जाती है। आपको बता दें - यह सभी राशि 'सैनिक कल्याण बोर्ड' की माध्यम से खर्च की जाती है।
कैसे प्राप्त हुआ 'सशस्त्र' नाम?
दोस्तो, आजादी के बाद सरकार को ऐसा प्रतीत हुआ कि - सैनिकों के परिवारवालों की जरूरतों का ख्याल रखने की आवश्यकता है। इसीलिए 7 दिसंबर को झंडा दिवस के रूप में मनाने का फैसला वर्ष 1949 को किया गया। शुरुआत में इस दिन को झंडा दिवस के रूप में मनाया जाता था। लेकिन, वर्ष 1993 में इस दिन को 'सशस्त्र सेना झंडा दिवस' का नाम दे दिया गया। इसके पश्चात इस दिवस को सशस्त्र सेना द्वारा मनाया जाने लगा। इस दिवस पर एकत्रित हुई राशि को युद्ध वीरांगनाओं, सैनिकों की विधवाओं, दिव्यांग सैनिक और उनके परिवार वालों के कल्याण पर खर्च किया जाता है।तो दोस्तों इस प्रकार सन 1949 से झंडा दिवस के रूप में मनाया जाने वाला दिवस सन 1993 से सशस्त्र सेना झंडा दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
इस दिवस पर हमारी भूमिका
अपने देश के लिए अपनी जान को न्योछावर कर देने वाले हमारे देश के वीर जवानों को हमें इस दिन सम्मान प्रदान करना चाहिए। झंडा दिवस कोष में अपना योगदान देना चाहिए, ताकि हमारे देश के शहीद जवानों के परिवारजनों का कल्याण हो सके।यदि आप भी भारतीय सेना को मदद करना चाहते हैं, तो यहां क्लिक करें ⇒ केन्द्रीय सैनिक बोर्ड सचिवालय (AFFDF)
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