भले ही आज हम एडवांस टेक्नोलॉजी के दुनिया में जी रहे हैं। मनोरंजन तथा समाचार के लिए हम आज के एडवांस टेक्नोलॉजी का उपयोग कर रहे हैं। हलांकि, हम इस बात को नकार भी नहीं सकते कि; समाज में जिस तरह से सूचना, मनोरंजन और विज्ञान संचार का महत्व बढ़ा है। उसे देखते हुए रेडियो ने फ्रिकवेंसी माड्यूलेशन चैनलों के विस्तार के माध्यम से अपनी उपयोगिता बढ़ाई है। आज भी रेडियो अपनी अनोखी पहचान बनाए हुए हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं, रेडियो का आविष्कार कब और किसने किया? (When and who invented the radio?) आज की यह पोस्ट आपको इसी संबंध में संपूर्ण जानकारी से रूबरू करा रही है।

रेडियो का आविष्कार कब और किसने किया? जानकारी हिंदी में!
रेडियो का आविष्कार कब और किसने किया? जानकारी हिंदी में!

दोस्तों दूर किसी स्थान से रेडियो के माध्यम से संपर्क स्थापित करने का अविष्कार इटली के विश्व प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री गुगलेल्मो मारकोनी (Guglielmo Marconi) ने सन 1895 दिसंबर में किया था। आपको बता दें, उन्हें बेतार के तार का जन्मदाता भी कहा जाता है। इन्होंने संचार क्रांति के क्षेत्र में किए गए इस महत्वपूर्ण खोज के लिए सन 1909 में भौतिक नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया था।

तो चलिए दोस्तों अब हम अधिक विस्तार से विश्व प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री Guglielmo Marconi और संचार क्रांति की महत्वपूर्ण खोज रेडियो के आविष्कार के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करते हैं।

गुगलेल्मो मारकोनी और रेडियो का आविष्कार : इतिहास

25 अप्रैल, 1874 को जन्म लेने वाले इटली के विश्व प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री गुगलेल्मो मारकोनी (Guglielmo Marconi)। जी हां, जिन्होंने रेडियो का आविष्कार किया। वह बचपन से ही विज्ञान के प्रयोग में लगे रहते थे। आपको जानकर आश्चर्य हो सकता है कि, उनकी शिक्षा घर पर ही निजी तौर पर हुई थी। वह अपने काम में इतने व्यस्त हो जाते थे कि, उन्हें अपने खाने-पीने का भी होश नहीं रहता था। उनके पिता गुसेप मारकोनी इनके काम से खुश नहीं थे। लेकिन, इनकी मां इनके काम में सदा सहयोगी बनी रहीं।

20 वर्ष की आयु में हम अपने सबमिशन और एग्जाम की टेंशन लेकर बैठे होते हैं। इसी आयु में उन्होंने हाइनरिख़ रूडॉल्फ़ हर्ट्ज़ द्वारा खोजी गई रेडियो तरंगों के विषय में जानकारी प्राप्त की। उन्होंने यह अंदाज लगाया कि, इन तरंगों की मदद से संदेश को ले जाने में प्रयोग किया जा सकता है। आपको बता दें उस समय में संदेश को भेजने के लिए तार का उपयोग किया जाता था। जो कि मोर्स कोड की सहायता से होता था। इसके पश्चात उन्होंने अपने मृत्यु पर्यंत हर्ट्स (Hertz) द्वारा उत्पन्न की गई विद्युतचुंबकीय तरंगों की मदद से संदेश को भेजना इसी क्षेत्र में निरंतर अनुसंधान करते रहे।

दोस्तों आपको यह पता होना चाहिए कि - रेडियो टेलीग्राफी को व्यवहारिक रूप देने का श्रेय Guglielmo Marconi को ही प्राप्त होता है।


दोस्तों हमारे साथ भी कभी-कभी ऐसा होता है कि, हम कुछ ऐसी खोज कर लेते हैं। जिसे हम जब तक किसी के साथ साझा ना करें; तब तक हमें चैन नहीं मिलता। बिल्कुल ऐसा ही हुआ एक रात उनके साथ और वह रात थी 1894 की महीना दिसंबर। उस रात वह अपने कमरे से नीचे आए और अपनी सोती हुई मां सिनोरा मारकोनी को जगाया और अपने प्रयोगशाला वाले कमरे में चलने का आग्रह किया। वह मां को कुछ महत्वपूर्ण वस्तु दिखाना चाहते थे। उनकी मां नींद में थी, इसीलिए पहले तो वह कुछ बड़बड़ाई लेकिन बाद में उनके साथ ऊपर उनके प्रयोगशाला वाले कमरे में चली गई।

उस प्रयोगशाला वाले कमरे में उन्होंने अपनी मां को एक घंटी दिखाई; जो कुछ उपकरणों के बीच लगी हुई थी। वह प्रयोगशाला के कमरे के दूसरे कोने में जाकर खड़े हो गए और वहां एक मोर्स कुंजी (Morse key) को दबाया। वही एक हल्की चिंगारी की आवाज आई और अचानक 30 फुट दूर रखी घंटी बजने लगी।

रेडियो तरंगों की मदद से इतनी दूर रखी घंटी बिना किसी तार की सहायता से बचना एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। नींद में ऊंघती हुई उनकी मां ने इस प्रयोग के लिए उत्साह तो दिखाया। लेकिन वह समझ नहीं पा रही थी कि, बिजली की इस घंटी को बजाना क्या इतनी बड़ी बात थी कि, इसके लिए उनकी रात की नींद खराब कर दी जाए।

दोस्तों हमें भी कुछ ऐसा ही रिस्पांस मिलता है। जब हम किसी ऐसे व्यक्ति से बात कर रहे हैं, जिन्हें हमारे क्षेत्र के बारे में कुछ भी ना पता हो। उनकी मां का मन ही मन ही सही पर ऐसा सोचना स्वाभाविक था। हालांकि, उनकी यह बात उन्हें तब समझ आई जब उन्होंने बिना किसी तार की सहायता से संदेश को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजकर दुनिया को दिखाया।

दोस्तों बचपन में आपने भी ऐसा अनुभव जरूर किया होगा कि, यदि आपके किसी काम के लिए आपका हौसला बढ़ा दिया जाए; तो आप उस काम को करने के लिए अपनी एड़ी चोटी का जोर लगा देते थे। बिल्कुल यही बात उनके साथ भी हुई। जब उनका हौसला बढ़ गया, तब उन्होंने अपने छोटे भाई की मदद से अपने संकेतों को भेजने और प्राप्त करने की दूरी एक कोठी से बाग तक (बगीचे तक) पार कर ली।

इसी प्रकार वह रेडियो संकेतों को अधिक से अधिक दूर भेजने तथा प्राप्त करने की कोशिश करने लगे। 1 दिन की बात है, जब वह अपने बनाए हुए ट्रांसमीटर को पहाड़ के एक ओर रिसीवर को दूसरी ओर रखा। रिसीवर के पास संदेश ग्रहण (रिसीव) करने के लिए उनका भाई खड़ा हुआ था। जब भाई को संदेश प्राप्त होने लगे तो वह खुशी के मारे पहाड़ी पर चढ़कर नाचने लगा। अपने भाई की इस खुशी को देखकर मारकोनी को इस बात का विश्वास हो गया कि, उसका यंत्र काम कर रहा है।

अपने इस प्रयोग को आगे बढाने के लिए उन्हें आर्थिक सहायता की आवश्यकता थी। इसीलिए उन्होंने इटली सरकार के डाक तार विभाग से आर्थिक सहायता की अपील की। लेकिन, जैसा आप सोच रहे हो, बिल्कुल वैसा ही हुआ। इटली सरकार के डाक तार विभाग ने उन्हें मदद करने से इंकार कर दिया।

दोस्तों सफलता प्राप्त करने के लिए इंसान को जिद्दी होना चाहिए और यही जिद्दीपन उनके भीतर भी था। इटली की सरकार से सहायता न मिलने पर वह निराश नहीं हुए। 22 वर्ष की अवस्था में वह अपने मां के साथ जहाज पर सवार होकर इंग्लैंड के लिए रवाना हो गए। वहां उन्होंने सन 1896 और 1897 के बीच अपने द्वारा निर्मित उपकरण से बेतार के तार से संबंधित कई प्रदर्शन सफलता पूर्वक पूर्ण किए। लंदन के प्रधान डाकघर के मुख्य इंजीनियर सर विलियम प्रिंस ने उनके प्रयोगों में काफी दिलचस्पी दिखाई।

इसी बीच उन्होंने अपने प्रयोगों को जारी रखा और सन 1897 में रेडियो संदेश को 12 मील तक भेजने में सफल हुए। उनके इस कारनामे से पूरे यूरोप में उनके नाम की धूम मच गई। बिना तार के संदेश भेजने का मानव का अनोखा ख्वाब पूरा हो गया था। इसी साल उन्होंने अपनी कंपनी ''The Wireless Telegraph & Signal Company'' की शुरुआत की। आपको बता दें इसके बाद इस कंपनी को Marconi Company के नाम से लोग जानने लगे।

यह बात है सन 1898 की, इंग्लैंड के युवराज एक द्वीप के पास अपने छोटे से जहाज में बीमार पड़ गए थे। उन दिनों रानी विक्टोरिया भी उसी द्वीप में रह रही थी। उन्होंने विक्टोरिया रानी को अपने पुत्र के स्वास्थ्य के विषय में जानकारी देने के लिए बेतार के तार द्वारा दोनों स्थानों को जोड़ दिया और 16 दिन की अवधि में दोनों स्थानों से लगभग 150 तार भेजे गए।

अब तक वह रेडियो संदेशों को 12 मील तक भेजने में सफल हुए थे। लेकिन, फिर भी इन्होंने अपने प्रयोगों को जारी रखा और रेडियो संदेशों को अधिक दूर भेजने का प्रयास करते रहे। सन 1899 में इंग्लिश चैनल के आर पार 31 मील की दूरी तक रेडियो संदेश भेजने में वह सफल हुए।

उनके प्रसिद्धि में चार चांद तब लग गए; जब उन्होंने पहली बार अंग्रेजी के एस (S) अक्षर को मोर्स कोड द्वारा अटलांटिक महासागर के आर पार भेजने में सफल हुए। उनकी इस सफलता से विश्व भर में उनकी प्रसिद्धि और अधिक बढ़ गई। इसके पश्चात अगले दो दशक तक वह रेडियो के कार्य करने के तरीके और परिष्कृत करते रहे। अंततः वह दिन आ गया जब उनके द्वारा बनाए गए यंत्रों से इंग्लैंड में 14 फरवरी 1922 में रेडियो प्रसारण सेवा का आरंभ हो गया।

रेडिओ का विकास - टेक्निकल प्रजापति
रेडिओ का विकास - टेक्निकल प्रजापति

दोस्तों जिस उम्र में हम अपने परिवार की जिम्मेदारियां उठाना शुरू करते हैं; उसी उम्र में यानी अपनी छोटी सी आयु 33 वर्ष में उनको सन 1909 में उनके जीवन की महान उपलब्धियों के लिए भौतिक नोबेल पुरस्कार दिया गया। सन 1930 में उन्हें Royal Academy of Italy का अध्यक्ष भी चुना गया।

20 जुलाई 1937, देश रूम, यह वही तारीख है और वही देश है, जहां मारकोनी ने दिल का दौरा पड़ने की वजह से अपनी अंतिम सांस ली थी। उनके सम्मान में अमेरिका, इंग्लैंड तथा इटली के रेडियो स्टेशन को कुछ मिनटों के लिए बंद कर दिया गया था। मारकोनी लगभग 63 वर्ष की आयु तक जीवित रहे थे। उन्होंने अपने जीवन काल में महान परिवर्तन को अपनी आंखों से देखा था। जिन्हें लाने में उनका बहुत योगदान रहा था। आधुनिक युग को रेडियो संचार का आधार प्रदान करने वाले इस महान वैज्ञानिक को शायद ही हम कभी भुला पाएंगे।

भारत में रेडियो का इतिहास और वर्तमान

क्या आप जानते हैं, भारत में रेडियो का इतिहास लगभग 98 वर्ष पुराना है। पहली बार 8 अगस्त 1921 को संगीत के विशेष कार्यक्रम से इसकी शुरुआत हुई और मुंबई से पुणे तक की यात्रा तय की गई।इसके पश्चात दौर चला शौकिया रेडियो क्लबों का।

  • रेडियो क्लब बंगाल : 13 नवंबर 1923
  • मुंबई प्राइवेट रेडियो सर्विस क्लब : 8 जून 1923
  • मद्रास प्रेसिडेंट रेडियो क्लब : 31 जुलाई 1924 बनाए गए।

1927 के आते-आते सभी शौकिया रेडियो क्लब बंद हो गए। यानी उन्होंने अपना दम तोड़ दिया।

IBC फुल फॉर्म इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी, जो 23 जुलाई 1927 को निजी प्रसारण संस्था बनी। इस संस्था का उद्घाटन मुंबई के वायसराय लॉर्ड इरविन ने किया। यह Medium wave transmitters 1.5 kilo watt capacity के थे। इससे 48 किलोमीटर के दायरे में रेडियो प्रसारण किया जा सकता था। ऐसे छोटे प्रसारण केंद्र रांची तथा रंगून में भी बनाए गए।

ISBS फुल फॉर्म इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन सर्विस, जिसका उदय अप्रैल, 1930 को हुआ। भारत सरकार के श्रम और उद्योग मंत्रालय के जरिए रेडियो की लाइसेंस फीस वसूलने का काम पोस्ट एंड टेलीग्राफ डिपार्टमेंट को सौंपा गया। उस समय आर्थिक मंदी के मार से 10 अक्टूबर 1931 को इसे बंद कर दिया गया। हालांकि, जनता की मांग पर 23 नवंबर 1931 को इसका पुनः प्रसारण आरंभ किया गया।

सन 1935 में मारकोनी कंपनी ने 250 watt का ट्रांसमीटर पेशावर में लगाया। ग्रामीण प्रसारण के लिए 14 गांव का चुनाव किया गया और प्रसारण का समय शाम के प्रतिदिन एक घंटा रखा गया।

10 सितंबर 1934 को आकाशवाणी नाम से 250 वाट क्षमता का केंद्र मैसूर में खोला गया। इसके पश्चात 8 जून 1936 को इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन सर्विस का नाम बदलकर All India Radio रख दिया गया। आपको बता दें यह नामकरण ब्रिटान नियोलेन फिल्डेन ने किया था। 1941 में सूचना प्रसारण विभाग बनाया गया। 1947 के पूर्व भारत में केवल 9 रेडियो स्टेशन थे। जिनमें लाहौर, ढाका और पेशावर के केंद्र भी शामिल थे।

वर्तमान में, रेडियो के क्षेत्र में भारत का विशिष्ट स्थान है। क्योंकि वह हमारा ही देश है, जहां 23 से अधिक भाषाओं में और लगभग 150 बोलियों में रेडियो का प्रसारण होता है; जो राष्ट्रीय क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर हमें सुनने को मिलता है।

भारत में, आम लोगों की भागीदारी को बढ़ाने के लिए रेडियो की फोन इन सेवा ने कार्यक्रमों को बेहतर बनाने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हमारे यहां अधिकांश रेडियो केंद्रों पर डिजिटल ब्रॉडकास्टिंग प्रणाली उपलब्ध है और रेडियो ऑन डिमांड तथा न्यूज़ इन फोन की व्यवस्था से श्रोताओं को मनपसंद कार्यक्रम के चुनाव का भी विकल्प दे रही है।

हमारे देश में समाचार का पहला बुलिटिन 19 जनवरी 1936 को मुंबई से प्रसारित किया गया था। तब से लेकर आज तक हमारे इस विकास यात्रा में हमारी उपलब्धियां इतनी अधिक हो चुकी है; कि आकाशवाणी का समाचार नेटवर्क आज विश्व के प्रमुख कार्यकर्ताओं में से एक बन चुका है। वर्तमान में प्रतिदिन लगभग पौने तीन सौ बुलेटिन प्रकाशित किए जाते हैं। जिनकी कुल अवधि 36 घंटे से भी अधिक की है। इस बात से आप पता लगा सकते हैं कि, भारत में रेडियो प्रसारण का कितना विकास किया गया है।

आज भी हम खाली वक्त में, घर के काम करते-करते रेडियो चला लेते हैं। जिससे हमारा मन भी लगा रहता है और काम भी हो जाता है। शायद ही रेडियो अब हमसे कभी दूर हो पाएगा। क्योंकि, सुनना किसे पसंद नहीं है।

उम्मीद करते हैं दोस्तों, हमारे द्वारा दी गई ''रेडियो का आविष्कार कब और किसने किया? जानकारी हिंदी'' में बहुत पसंद आई होगी। जिसे आप अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, टि्वटर, व्हाट्सएप आदि पर अपने लाजवाब मित्रों के साथ साझा करेंगे। इसी के साथ अगर हमारे लेख में कोई त्रुटि है या आपको लेख बहुत ज्यादा पसंद आया है; तो अपनी राय कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। क्योंकि, दोस्तों कमेंट बॉक्स तो आपका ही है।

1 Comments

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  1. Wow Sir {Bhai :)} its Great Information, thanks for this "
    When and who invented the radio? Information in Hindi!" :-)

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