ये मेरे वतन के लोगों जरा आँख में भर लो पानी
जो शहीद हुए है उनकी जरा याद करो कुर्बानी

***यह केवल कुछ पंक्तियाँ नहीं है, यह  बल्कि शहीदों की शहादत के लिए लिखी हुई गाथा है। 

नमस्कार दोस्तों,
फ्रेंड्स, आज 23 मार्च है यानी शहीदों की शहादत को याद करने का दिन। 23 मार्च 1931 को आज ही के दिन आजादी के तीन मतवालों ने [भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ] हसते हसते फांसी के फंदे को चूम लिया था। आज की पोस्ट उन शहीदों को समर्पित है, जिन्होंने हमारे देश के लिए अपने प्राण हसते हसते त्याग दिए। आज कि इस पोस्ट में हम शहीद दिवस पर हमारे शहीदों के शहादत को याद करेंगे। 

Shahid Diwas 2019  जरा याद करो कुर्बानी  शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को सत सत नमन Technical Prajapati
Shahid Diwas 2019  जरा याद करो कुर्बानी

23 मार्च 1931 को आज के दिन क्या हुआ था

दोस्तों, आज के दिन को इतिहास के पन्ने में काले अध्याय के रूप में याद किया जाता है। 23 मार्च 1931 की आधी रात को अंग्रेज हुकूमत ने भारत के तीन सपूतों- भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फंसी पर लटका दिया था। देश की आजादी के लिए खुद को देश पर कुर्बान करने वाले इन महान क्रांतिकारियों को याद करने के लिए ही शहीद दिवस मनाया जाता है।

फ्रेंड्स, भारत उन क्रांतिकारियों की कर्मभूमी है, जिन्होंने अपने प्राणों की परवाह किये बिना देश के लिए खुद को न्यौछावर कर दिया। वैसे तो देश को आजाद कराने के लिए अनगिनत विरों ने अपने प्रणों की कुर्बानी दी, लेकिन भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की लोकप्रियता सबसे अलग थी। तीनों क्रांतिकारियों ने अपने दम पर अंग्रेजी हुकूमत को हीला कर रख दिया था।



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दोस्तों, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की लोकप्रियता अंग्रेज हुकूमत को इतनी ज्याद खटक रही थी की, तीनों को एक दिन पहले ही फांसी पर लटका दिया गया। दरअसल 8 अप्रैल 1929 को चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में 'पब्लिक सेफ्टी' और 'ट्रेड डिस्प्यूट बिल' के विरोध में सेंट्रेल असेंबली में बम फेंका गया, और बिल विरोधी नारे लगाए गए। इस दौरान भगत सिंह ने अपनी गिरफ्तारी दी। जिसके बाद क्रांतिकारियों पर मुकदमा चलाया गया। भगत सिंह की गिरफ्तारी की खबर से देश में आजादी की आग और तेज हो गई। अंग्रेज हुकूमत को इस आंच को झेल पाना मुश्किल हो रहा था। इसलिए भारत के तीनों क्रांतिकारियों को एक दिन पहले ही फांसी पर लटका दिया गया। हालाँकि फांसी दिए जाने से पहले भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव से उनकी आखिरी ख्वाहिश पूछी गई. तीनों ने एक स्वर में कहा कि हम आपस में गले मिलना चाहते हैं। 

फांसी के एक दिन पहले भगत सिंह ने लिखा आखरी खत

भगत सिंह ने फांसी से पहले (Shaheed Bhagat Singh) अपने आखिरी खत में लिखा, ‘साथियों स्वाभाविक है जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए। मैं इसे छिपाना नहीं चाहता हूं, लेकिन मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं कि कैंद होकर या पाबंद होकर न रहूं। मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है। क्रांतिकारी दलों के आदर्शों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है। इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में मैं इससे ऊंचा नहीं हो सकता था। मेरे हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ने की सूरत में देश की माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह की उम्मीद करेंगी। इससे आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि, क्रांति को रोकना नामुमकिन हो जाएगा। आजकल मुझे खुद पर बहुत गर्व है। अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है। कामना है कि यह और नजदीक हो जाए।

भगत सिंह से जुडी कुछ बातें

  1. भारत के वीर स्वतंत्रता सेनानी भगत सिह का जन्म पंजाब प्रांत में लायपुर जिले के बंगा में 28 सितंबर, 1907 को पिता किशन सिंह और माता विद्यावती के घर हुआ था।
  2. 12 साल की उम्र में जलियांवाला बाग हत्याकांड के साक्षी रहे भगत सिंह की सोच पर ऐसा असर पड़ा कि उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर भारत की आजादी के लिए 'नौजवान भारत सभा' की स्थापना कर डाली। 
  3. वीर सेनानी भगत सिंह ने देश की आजादी के लिए जिस साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुकाबला किया, वह आज के युवकों के लिए एक बहुत बड़ा आदर्श है। 
  4. भगत सिंह का 'इंकलाब जिंदाबाद' नारा काफी प्रसिद्ध हुआ. वो हर भाषण और लेख में इसका जिक्र करते थे। 
  5. आजादी के इस मतवाले ने पहले लाहौर में 'सांडर्स-वध' और उसके बाद दिल्ली की सेंट्रल असेम्बली में चंद्रशेखर आजाद और पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ बम-विस्फोट कर ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलंदी दी। 
  6. परिजनों ने जब उनकी शादी करनी चाही तो वह घर छोड़कर कानपुर भाग गए. अपने पीछे जो खत छोड़ गए उसमें उन्‍होंने लिखा कि उन्‍होंने अपना जीवन देश को आजाद कराने के महान काम के लिए समर्पित कर दिया है। 
  7. वीर स्वतंत्रता सेनानी ने अपने दो अन्य साथियों-सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर काकोरी कांड को अंजाम दिया, जिसने अंग्रेजों के दिल में भगत सिह के नाम का खौफ पैदा कर दिया।
  8. भगत सिंह को पूंजीपतियों की मजदूरों के प्रति शोषण की नीति पसंद नहीं आती थी। 8 अप्रैल 1929 को सेंट्रल असेम्बली में पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्प्यूट बिल पेश हुआ। अंग्रेजी हुकूमत को अपनी आवाज सुनाने और अंग्रेजों की नीतियों के प्रति विरोध प्रदर्शन के लिए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेम्बली में बम फोड़कर अपनी बात सरकार के सामने रखी। दोनों चाहते तो भाग सकते थे, लेकिन भारत के निडर पुत्रों ने हंसत-हंसते आत्मसमर्पण कर दिया।
  9. असहयोग आंदोलन समाप्‍त होने के बाद जब हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे तो उनको गहरी निराशा हुई।  जिसके बाद 1930 में लाहौर सेंट्रल जेल में उन्‍होंने अपना प्रसिद्ध निबंध ''मैं नास्तिक क्‍यों हूं'' (Why MN Aththist) लिखा। 
  10. लाहौर षड्यंत्र केस में उनको राजगुरू और सुखदेव के साथ फांसी की सजा हुई और 24 मई 1931 को फांसी देने की तारीख नियत हुई। लेकिन नियत तारीख से 11 घंटे पहले ही 23 मार्च 1931 को उनको शाम साढ़े सात बजे फांसी दे दी गई। कहा जाता है कि जब उनको फांसी दी गई तब वहां कोई मजिस्‍ट्रेट मौजूद नहीं था जबकि नियमों के मुताबिक ऐसा होना चाहिए था। 

***तो दोस्तों आज 23 मार्च 2019 इस दिन शहीद दिवस पर हम शहीद भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव की कुर्बानिओं को याद करते हुए। शत शत नमन करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। 

उम्मीद करते हैं दोस्तों आप सभी को आज का " Shahid Diwas 2019 : जरा याद करो कुर्बानी | शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को सत सत नमन | " यह पोस्ट बेहद पसंद आया होगा एक उम्मीद और करते हैं कि आप शहीद जवानों की कुर्बानी यों को हमेशा याद रखेंगे।

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***तो दोस्तों आज के लिए बस इतना ही फिर मिलेंगे अगली पोस्ट में तब तक के लिए नमस्कार जय हिन्द वन्दे मातरम। 

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