भारत रत्न : चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की जीवनी | हिंदी में
भारत रत्न : चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का जन्म मद्रास प्रेसीडेंसी के सालेम जिले के थोरापल्ली गाँव में 10 दिसम्बर 1978 को हुआ था। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता, लेखक और वकील थे। वह भारत के अंतिम गवर्नर जनरल भी थे।  ‘राजाजी’ के नाम से मशहूर, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को देश सेवा में किये गए कार्यों के लिए भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, ‘भारत रत्न’ से 1954 में सम्मानित किया गया।

हेलो, नमस्कार दोस्तों,
फ्रेंड्स, जैसे की हमने आपसे कहा था की, भारत रत्न पुरस्कार विजेताओं के बारे में आपको विशेष जानकारी देने के लिए हमने भारत रत्न पुरस्कार विजेताओं के बारे में पूरी जानकारी आपको देने का फैसला किया है। जहाँ हम आपको आज तक हुए सभी 48 भारत रत्न विजेताओं के बारे में एक एक करके उनकी जीवनी हम आपके सामने प्रस्तुत करेंगे। इसीलिए हम आज आपके लिए भारत रत्न : चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की जीवनी | Bharat Ratna : Biography of Chakravarti Rajgopalachari के बारे में जानने वाले है।


भारत रत्न  चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की जीवनी Technical Prajapati

Bharat Ratna  Biography of Chakravarti Rajgopalachari, Technical Prajapatiनाम : चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (राजाजी),
जन्म : 10 दिसम्बर 1978 मद्रास प्रेसीडेंसी के सालेम जिले के थोरापल्ली गाँव में,
मृत्यु  : 25 दिसम्बर 1972 (उम्र 94) मद्रास, भारत
पिता : चक्रवर्ती वेंकटआर्यन,

माता : सिंगारम्मा,
पत्नी : अलामेलु मंगम्मा (1897–1916),

आरम्भिक जीवन : भारत रत्न : चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

बचपन और पढाई : चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का जन्म मद्रास प्रेसीडेंसी के सालेम जिले के थोरापल्ली गाँव में 10 दिसम्बर 1978 को हुआ था। उनका जन्म एक धार्मिक आएंगर परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम चक्रवर्ती वेंकटआर्यन और माता का नाम सिंगारम्मा था। बचपन में वह शारीरिक रूप से इतने ज्यादा कमजोर थे कि उनके माता-पिता को ऐसा लगता था कि, वो शायद ही ज्यादा समय तक जी पायेंगे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा थोरापल्ली में ही हुई। जब वो पांच वर्ष के थे, तब उनका परिवार होसुर चला गया। जहाँ उन्होंने Hosur R. V. Government Boys Higher Secondary School में दाखिला लिया। उन्होंने Matriculation exam सन 1891 में पास की और वर्ष 1894 में बैंगलोर के Central College से कला में ग्रेजुएशन किया। इसके पश्चात उन्होंने Presidency College Madras में कानून की पढाई के लिए दाखिला लिया और सन 1897 को पूरा किया।

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निजी जीवन : चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का विवाह वर्ष 1897 में अलामेलु मंगम्मा के साथ संपन्न हुआ। राजगोपालाचारी दंपत्ति के कुल पांच संताने हुईं – तीन बेटे तथा दो बेटियाँ। मंगम्मा सन 1916 में स्वर्ग सिधार गयीं जिसके बाद चक्रवर्ती राजगोपालाचारी अपने बच्चों का पालन-पोषण किया। उनके बेटे चक्रवर्ती राजगोपालाचारी नरसिम्हन कृष्णागिरी लोकसभा क्षेत्र से सन 1952 से 1962 तक संसद सदस्य रहे। उन्होंने बाद में अपने पिता की आत्मकथा लिखी। आपको बता दें दोस्तों, राजगोपालाचारी की बेटी लक्ष्मी का विवाह महात्मा गाँधी के बेटे देवदास गाँधी के साथ हुआ था।

राजनीति में प्रवेश : भारत रत्न : चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

स्वाधीनता आन्दोलन : सन 1900 के आस-पास उन्होंने वकालत प्रारंभ किया जो धीरे-धीरे जम गया था। वकालत के दौरान प्रसिद्ध राष्ट्रवादी बाल गंगाधर तिलक से प्रभावित होकर उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और सालेम नगर पालिका के सदस्य और फिर अध्यक्ष चुने गए। देश के बहुत सारे बुद्धजीवियों की तरह वह भी Indian National Congress के सदस्य बन गए और धीरे-धीरे इसकी गतिविधियों और आंदोलनों में भाग लेने लगे। उन्होंने कांग्रेस के कलकत्ता (1906) और सूरत (1907) अधिवेसन में भाग लिया। सन 1917 में उन्होंने स्वाधीनता कार्यकर्ता पी. वर्दाराजुलू नायडू के पक्ष में अदालत में दलील दी। वर्दाराजुलू पर विद्रोह का मुकदमा लगाया गया था।

वकालत छोड़ दी : चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, एनी बेसेंट और सी. विजयराघव्चारियर जैसे नेताओं से बहुत प्रभावित थे। जब महात्मा गाँधी स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रीय हुए तब राजगोपालाचारी उनके अनुगामी बन गए। इसके पश्चात उन्होंने असहयोग आन्दोलन में भाग लिया और अपनी वकालत छोड़ दी। वर्ष 1921 में उन्हें कांग्रेस कार्य समिति का सदस्य चुना गया और वह कांग्रेस के महामंत्री भी रहे। सन 1922 में कांग्रेस के गया अधिवेसन में उन्हें एक नयी पहचान मिली। उन्होंने ‘Government of India Act 1919’ के तहत अग्रेज़ी सरकार के साथ किसी भी सहयोग का विरोध किया और ‘Imperial Legislative Council’ के साथ-साथ राज्यों के ‘विधान परिषद’ में प्रवेश का भी विरोध कर ‘नो चेन्जर्स’ समूह के नेता बन गए। ‘No Changers’ ने ‘Pro Changers’ को पराजित कर दिया जिसके फलस्वरूप मोतीलाल नेहरु और चितरंजन दास जैसे नेताओं ने इस्तीफा दे दिया।

महत्वपूर्ण भूमिका : राजगोपालाचारी 1924-25 के वैकोम सत्याग्रह से भी जुड़े थे। धीरे-धीरे राजगोपालाचारी तमिल नाडु कांग्रेस के प्रमुख नेता बन गए और बाद में तमिलनाडु कांग्रेस समिति के अध्यक्ष भी चुने गए। जब 1930 में गांधीजी ने नमक सत्याग्रह के दौरान दांडी मार्च किया तब राजगोपालाचारी ने भी नागपट्टनम के पास वेदरनयम में नमक कानून तोड़ा जिसके कारण सरकार ने उन्हें जेल भेज दिया। Government of India Act, 1935, के तहत उन्होंने 1937 के चुनावों में भाग लेने के लिए कांग्रेस को सहमत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी तथा 1937 के चुनाव के बाद मद्रास प्रेसीडेंसी में राजगोपालाचारी के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनी। द्वितीय विश्व में भारत को शामिल करने के विरोध में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्हें दिसम्बर 1940 में गिरफ्तार कर एक साल के लिए जेल भेज दिया गया। उन्होंने 1942 के ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन का विरोध किया और ‘मुस्लिम लीग’ के साथ संवाद की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने विभाजन के मुद्दे पर जिन्नाह और गाँधी के बीच बातचीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

नेहरु सरकार में बने मंत्री : 1946-47 में राजगोपालाचारी, जवाहर लाल नेहरु के नेतृत्व में अंतरिम सरकार में मंत्री रहे। 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के साथ-साथ बंगाल भी दो हिस्सों में बंट गया। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को भारत के हिस्से वाले पश्चिम बंगाल का प्रथम राज्यपाल बनाया गया। सन 1950 में नेहरु ने राजगोपालाचारी को अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया जहाँ वो बिना किसी मंत्रालय के मंत्री थे। सरदार पटेल के मृत्यु के पश्चात उन्हें गृह मंत्री बनाया गया जिस पद पर उन्होंने 10 महीने कार्य किया। प्रधानमंत्री नेहरु के साथ बहुत सारे मुद्दों पर मतभेद होने के कारण अंततः उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया और मद्रास चले गए।

भारत के गवर्नर जनरल : लेकिन इससे पहले भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल Mountbatten के अनुपस्थिति में राजगोपालाचारी 10 नवम्बर से 24 नवम्बर 1947 तक कार्यकारी गवर्नर जनरल रहे और फिर बाद में Mountbatten के जाने के बाद जून 1948 से 26 जनवरी 1950 तक गवर्नर जनरल रहे। इस प्रकार राजगोपालाचारी न केवल अंतिम बल्कि प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल भी रहे।

दोस्तों जब राजगोपालाचारी मद्रास चले गए इसके पश्चात भी लगभग दो साल तक मद्रास के मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद उन्होंने कुछ समय के लिए सक्रीय राजनीति से सन्यास ले लिया और लेखन के कार्य में लग गए।

पुरस्कार : 

✔️सन 1958 में उन्हें उनकी पुस्तक ‘चक्रवर्ती थिरुमगन’ के लिए तमिल भाषा का साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया। 

✔️भारत सरकार ने उन्हें सन 1954 में ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया।

मृत्यु : नवम्बर 1972 में उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और 17 दिसम्बर 1972 को उन्हें मद्रास गवर्नमेंट हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, जहाँ उन्होंने 25 दिसम्बर को अंतिम सांसें लीं।
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