चन्द्रशेखर वेंकटरमन (C. V. Raman) की जीवनी - PDF Download के साथ (अंग्रेजी : Biography of Chandrashekhar Venkataraman - with pdf download) : भारतीय भौतिक शास्त्री - चंद्रशेखर वेंकट रमन, प्रकाश के प्रकीर्णन पर उत्कृष्ट कार्य के लिए इन्हे वर्ष 1930 में भौतिक क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार दिया गया। उनका आविष्कार ''रमन प्रभाव'' उनके ही नाम पर रखा गया है। इसी के साथ सन 1954 में उन्हें भारत सरकार द्वारा ''भारत रत्न'' इस सम्मान से विभूषित किया गया तथा सन 1957 में ''लेनिन शांति पुरस्कार'' प्रदान किया गया था। आज की इस पोस्ट में हम भारत के महान भौतिकी शास्त्री ''डॉ. चंद्रशेखर वेंकट रमन'' की जीवनी पर प्रकाश डाल रहे हैं।
दोस्तों, आपको बता दें - वेंकट रमन द्वारा 28 फरवरी 1928 को रमन प्रभाव की खोज की घोषणा की गई थी। इसी के साथ आपको यह भी पता होना चाहिए; राष्ट्रीय विज्ञान दिवस रमन प्रभाव की खोज के कारण मनाया जाता है। इसी खोज के लिए सन 1930 में डॉ. सी. वी. रमन को भौतिक शास्त्र का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। वह 2रे भारतीय तथा एशियन व्यक्ति थे; जिन्हें नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ। आइए दोस्तों, भारत के महान भौतिकी शास्त्री ''सर चंद्रशेखर वेंकटरमन'' के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करते हैं।
दोस्तों, आपको चंद्रशेखर वेंकट रमन के ग्रेजुएशन का एक किस्सा बताते हैं। जब वेंकट रमन स्नातक (graduate) कक्षा में पहुंचे तो - उनके अध्यापक को यह लगा कि - यह बालक गलती से इस कक्षा में आ गया है। क्योंकि, उनकी उम्र बहुत छोटी थी। अध्यापक ने उनसे यह पूछा - क्या तुम वास्तव में इस कक्षा के विद्यार्थि हो? तब वेंकट रमन ने हां में जवाब दिया। उनका जवाब सुनते ही अध्यापक के आश्चर्य का ठिकाना ही ना रहा।
दोस्तों सन 1904 में बी. ए. ग्रैजुएट की उपाधि प्राप्त करने के बाद - उन्होंने आगे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश जाने का निर्णय लिया। हालांकी, वेंकटरमन के स्वास्थ्य से संबंधित परीक्षण के पश्चात एक ब्रिटिश चिकित्सक ने उनकी दुर्बलता को देखते हुए विदेश न जाने की सलाह दी। इसलिए, उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए विदेश न जाते हुए प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लेने का मन बना लिया। m.a. की पढ़ाई करते हुए रमन अपनी कक्षा में कभी कबार जाते थे। उनके प्रोफेसर आर. एल. जॉन्स को यह पता था; कि, यह लड़का अपनी पढ़ाई खुद कर सकता है। इसीलिए उन्होंने रमन को स्वतंत्रता-पूर्वक पढ़ने की छोट दी थी। हालांकि, आमतौर पर रमन कॉलेज की प्रयोगशाला में कुछ प्रयोग और खोज करते रहते थे। इसके लिए वह अपने प्रोफेसर के ''Fabri-Pirat Interferometer'' का इस्तेमाल करके प्रकाश की किरणों को नापने का प्रयास करते थे।
रमन के प्रोफेसर को भी इस बात का अंदाशा नहीं हो पाता था; कि, रमन किस चीज की खोज कर रहे हैं और अब तक क्या खोज हुई है? उन्होंने रमन को अपने परिणामों को शोध पेपर की शक्ल में लिखकर लंदन में प्रकाशित होने वाली ''फिलोसोफिकल मैगज़ीन'' को भेज देने की सलाह दी और इसका नतीजा यह हुआ; कि, सन 1906 में, पत्रिका के नवंबर अंक में उनका पेपर प्रकाशित किया गया। इसी के साथ विज्ञान को दिया गया; रमन का यह पहला योगदान था। उस समय उनकी आयु केवल 18 वर्ष थी। इसके पश्चात सन 1907 में भौतिकी में परास्नातक (मास्टर डिग्री) उपाधि प्राप्त की।
वेंकटरमन, उच्च शिक्षण के लिए विदेश नहीं जा पाए। इसीलिए उन्होंने अखिल भारतीय लेखा सेवा प्रतियोगिता परीक्षा [All India Accounts Service Competition Examination] में भाग लिया और उसमें भी प्रथम स्थान प्राप्त किया। इसी के साथ केवल 19 वर्ष की आयु में ही सहायक अकाउंटेंट जनरल के पद पर वित्त विभाग, कोलकाता में उनकी नियुक्ति हुई। इसके पश्चात - 6 मई, 1907 को कृष्णस्वामी अय्यर की सुपुत्री ''लोकसुंदरी'' से रमन का विवाह हो गया।
***और क्या? बस! इसी के बाद दुनिया को एक युवा वैज्ञानिक मिल गया।
इस एक लम्हे ने रमन की जिंदगी बदल दी : 1 दिन रमन अपने कार्यालय से घर लौट रहे थे; तभी उन्होंने एक साइन बोर्ड देखा। जिस पर लिखा था; वैज्ञानिक अध्ययन के लिए भारतीय परिषद (इंडियन अशोसिएशन फार कल्टीवेशन आफ़ साईंस)। यह पढ़ते ही मानों - रमन को बिजली का करंट छू गया हो। वह जल्दी से परिषद कार्यालय में पहुंच गए। वहां पहुंच कर उन्होंने अपना परिचय दिया और परिषद की प्रयोगशाला में प्रयोग करने की आज्ञा प्राप्त की और यहीं से उनके वैज्ञानिक जीवन की शुरुआत हुई।
तबादला और इस दौरान अनुसंधान : तत्पश्चात उनका तबादला रंगून तथा उसके बाद नागपुर को हुआ। अब रमन ने अपने घर में ही प्रयोगशाला बना ली थी और समय मिलने पर उसी प्रयोगशाला में अपने प्रयोग करते रहते थे। सन 1911 में, उनका तबादला एक बार फिर कोलकाता हो गया। और एक बार फिर परिषद की प्रयोगशाला में प्रयोग करने का अवसर उन्हें प्राप्त हुआ। यह निर्विघ्न (बिना किसी रुकावट) सन 1917 तक यूं ही चलता रहा। इस अवधि में उनके अंशकालिक अनुसंधान का क्षेत्र था - ध्वनि के कम्पन और कार्यों का सिद्धान्त।
भौतिकी कोश में एकमात्र भारतीय लेखक : दोस्तों, डॉ.चंद्रशेखर वेंकटरमन को वाद्यों की भौतिकी का ज्ञान इतना गहरा था; कि - सन 1927, में जर्मनी में प्रकाशित 20 खण्डों वाले भौतिकी विश्वकोश के आठवें खंड के लिए वाद्य-यंत्रों की भौतिकी का लेख इन्हीं से तैयार करवाया गया। दोस्तों हमें इस बात पर गर्व होना चाहिए कि - संपूर्ण भौतिकी कोश में चंद्रशेखर वेंकटरमन ही ऐसे लेखक हैं; जो भारत से हैं (अन्य सभी जर्मन के हैं)।
सरकारी पद को दिया त्यागपत्र : सन 1917 में, कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्राध्यापक का पद बना; तो वहां के कुलदीप, आशुतोष मुखर्जी द्वारा उसे स्वीकार करने का आमंत्रण रमण को प्राप्त हुआ। रमन ने उनके आमंत्रण को स्वीकार करते हुए; अपने उच्च सरकारी पद को त्यागपत्र दे दिया। इसी से यह अनुमान लगाया जा सकता है; कि भौतिकी शास्त्र के लिए रमन क्या कुछ कर सकते थे?
कलकत्ता विश्वविद्यालय : यहां कुछ वर्षों तक रमन ने वस्तुओं में प्रकाश के चलने का अध्ययन किया। इनमें उन्हें पता चला - किरणों का पूर्ण समूह बिल्कुल सीधा नहीं चलता है उसका कुछ भाग अपनी राह बदल कर बिखर जाता है।
रमन प्रभाव की खोज के लिए प्रेरणा : सन 1921 में वेंकटरमन को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय इंग्लैंड से कांग्रेस में भाग लेने के लिए निमंत्रण प्राप्त हुआ। वहां उनकी मुलाकात लार्ड रदरफोर्ड, जे. जे. थामसन जैसे विश्वविख्यात वैज्ञानिकों से हुई। इंग्लैंड से भारत लौटते समय अनपेक्षित घटना के कारण ''रमन प्रभाव'' की खोज के लिए प्रेरणा मिली।
क्या थी वह अनपेक्षित घटना? : जी हां! हम आपको वह अनपेक्षित घटना जरूर बताएंगे। दरअसल, जब वह ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, इंग्लैंड से वापस भारत पानी के जहाज से लौट रहे थे। तब रास्ते भर वह भूमध्य समुद्र के जल के रंग को ध्यान पूर्वक देखते जा रहे थे; तथा समुद्र के नीलेपन को निहार रहे थे। उन्हें समुद्र के नीले रंग के बारे में जानने की उत्सुकता हो रही थी। उनके वैज्ञानिक मस्तिष्क में कई प्रश्न उमड रहे थे। वह सोचने लगे - आखिर क्यों? समुद्र का रंग नीला होता है। कोई और रंग का क्यों नहीं है? कहीं सागर आकाश के प्रतिबिंब के कारण तो नीला नहीं दिख रहा। इन्हीं सवालों में डूबे रहते रहते उन्होंने समुद्री यात्रा के दौरान सोचा कि शायद सूर्य का प्रकाश जब पानी में प्रवेश करता है; तो वह नीला हो जाता है। यही वह कारण था की - डॉक्टर चंद्रशेखर वेंकटरमन ने ''रमन प्रभाव'' की खोज की।
***दोस्तों यह एक अनपेक्षित घटना इसलिए है; क्योंकि, आमतौर पर एक सामान्य व्यक्ति कभी भी ऐसे सवाल नहीं करता। लेकिन, दोस्तों इस वैज्ञानिक मस्तिष्क में ऐसे ऐसे सवाल उठते हैं; जिनकी कल्पना भी हम नहीं कर सकते और उस दिन वेंकटरमन के साथ यही हुआ था।
***दोस्तों उन दिनों भौतिकी में यह एक विस्मयकारी खोज थी। वेंकटरमन की इस खोज ने क्वांटम भौतिकी के क्षेत्र में भी अत्यंत क्रांतिकारी परिवर्तन लाया। रमन प्रभाव की खोज वेंकटरमन के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी।
निधन : वर्ष 1970, 21 नवम्बर को सर. डॉ. चंद्रशेखर वेंकटरमन (सी. वी. रमन) का 82 वर्ष की आयु मे देहांत हो गया। हां! वह आज हमारे साथ नहीं है; लेकिन, उनका आविष्कार ''रमन प्रभाव'' हमेशा हमें उनकी याद दिलाता रहेगा।
उम्मीद करते हैं दोस्तों - हमारे द्वारा दी गई यह जानकारी आप सभी दोस्तों को बेहद पसंद आई होगी और इसे आप अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर जरूर शेयर करेंगे। साथ ही साथ कमेंट बॉक्स में दी गई जानकारी के बारे में अपनी राय जरूर देंगे। क्योंकि, दोस्तों कमेंट बॉक्स आपका ही है।
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चन्द्रशेखर वेंकटरमन की जीवनी
चन्द्रशेखर वेंकटरमन (जन्म: 7 नवम्बर, 1888; मृत्यु: 21 नवम्बर, 1970) : दोस्तों यह पहले ऐसे व्यक्ति थे; जिन्होंने भौतिक शास्त्र या विज्ञान की दुनिया में भारत को प्रसिद्धि दिलाई। अगर बात की जाए - प्राचीन भारत की विज्ञान में उपलब्धियों की तो - शून्य और दशमलव प्रणाली की खोज, आयुर्वेद के फार्मूले तथा पृथ्वी के अपनी दूरी पर घूमने के बारे में आदि उपलब्धियां थी। हालांकि, अभी तक पूर्णता: विज्ञान की दृष्टिकोण से विशेष प्रगति नहीं हुई थी। सी. वी. रमन द्वारा खोए हुए रास्ते की खोज की गई और नियमों का प्रतिपादन किया गया। जिस वजह से स्वतंत्र भारत के विकास और प्रगति का रास्ता खुल गया।दोस्तों, आपको बता दें - वेंकट रमन द्वारा 28 फरवरी 1928 को रमन प्रभाव की खोज की घोषणा की गई थी। इसी के साथ आपको यह भी पता होना चाहिए; राष्ट्रीय विज्ञान दिवस रमन प्रभाव की खोज के कारण मनाया जाता है। इसी खोज के लिए सन 1930 में डॉ. सी. वी. रमन को भौतिक शास्त्र का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। वह 2रे भारतीय तथा एशियन व्यक्ति थे; जिन्हें नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ। आइए दोस्तों, भारत के महान भौतिकी शास्त्री ''सर चंद्रशेखर वेंकटरमन'' के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करते हैं।
जीवन - परिचय
7 नवंबर 1988, को चंद्रशेखर वेंकट रमन का जन्म तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली शहर में हुआ; जो कावेरी नदी के किनारे स्थित है। उनके पिताजी का नाम चंद्रशेखर अय्यर और मातोश्री का नाम पार्वती अम्मल था। उनके पिताजी एस. पी. जी. कॉलेज में भौतिकी शास्त्र के प्राध्यापक थे; तथा उनकी माताजी एक सुसंस्कृत परिवारिक महिला थी। दोस्तों जब वेंकटरमण केवल 4 वर्ष के थे; तब उनके पिताजी विशाखापट्टनम के श्रीमती. ए. वी. एन. कॉलेज में भौतिकी और गणित के अध्यापक हो कर चले गए थे। आपको बता दें - उनके पिताजी भौतिक और गणित के विद्वान और उन्हें संगीत से प्रेम था। चूंकि, उनके पिताजी को पढ़ने का बहुत शौक था। इसीलिए, उन्होंने अपने घर में ही एक छोटी सी पुस्तकालय (लाइब्रेरी) बना रखी थी। शायद इसी वजह से रमन को विज्ञान और अंग्रेजी साहित्य की पुस्तकों से परिचय बहुत छोटी उम्र में ही हो गया था।शिक्षा
चंद्रशेखर वेंकट रमन को प्रारंभिक शिक्षा विशाखापट्टनम से प्राप्त हुई। वह बचपन से ही बहुत ही होनहार विद्यार्थी थे। आपको यह जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि - अपने मात्र 12 वर्ष की छोटी सी आयु में ही उन्होंने मैट्रिक यानी दसवीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण कर ली थी। सन 1901 में इंटरमीडिएट यानि बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने चेन्नई के प्रेसीडेंसी कॉलेज में अपना दाखिला करवा लिया। यहां भी आपको हैरानी होगी कि उस वक्त उनकी आयु मात्र 13 वर्ष थी। इसी से आप इस बात का अनुमान लगा सकते हैं कि चंद्रशेखर वेंकट रमन बचपन से ही कितने मेधावी (Brilliant) विद्यार्थी थे।दोस्तों, आपको चंद्रशेखर वेंकट रमन के ग्रेजुएशन का एक किस्सा बताते हैं। जब वेंकट रमन स्नातक (graduate) कक्षा में पहुंचे तो - उनके अध्यापक को यह लगा कि - यह बालक गलती से इस कक्षा में आ गया है। क्योंकि, उनकी उम्र बहुत छोटी थी। अध्यापक ने उनसे यह पूछा - क्या तुम वास्तव में इस कक्षा के विद्यार्थि हो? तब वेंकट रमन ने हां में जवाब दिया। उनका जवाब सुनते ही अध्यापक के आश्चर्य का ठिकाना ही ना रहा।
दोस्तों सन 1904 में बी. ए. ग्रैजुएट की उपाधि प्राप्त करने के बाद - उन्होंने आगे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश जाने का निर्णय लिया। हालांकी, वेंकटरमन के स्वास्थ्य से संबंधित परीक्षण के पश्चात एक ब्रिटिश चिकित्सक ने उनकी दुर्बलता को देखते हुए विदेश न जाने की सलाह दी। इसलिए, उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए विदेश न जाते हुए प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लेने का मन बना लिया। m.a. की पढ़ाई करते हुए रमन अपनी कक्षा में कभी कबार जाते थे। उनके प्रोफेसर आर. एल. जॉन्स को यह पता था; कि, यह लड़का अपनी पढ़ाई खुद कर सकता है। इसीलिए उन्होंने रमन को स्वतंत्रता-पूर्वक पढ़ने की छोट दी थी। हालांकि, आमतौर पर रमन कॉलेज की प्रयोगशाला में कुछ प्रयोग और खोज करते रहते थे। इसके लिए वह अपने प्रोफेसर के ''Fabri-Pirat Interferometer'' का इस्तेमाल करके प्रकाश की किरणों को नापने का प्रयास करते थे।
रमन के प्रोफेसर को भी इस बात का अंदाशा नहीं हो पाता था; कि, रमन किस चीज की खोज कर रहे हैं और अब तक क्या खोज हुई है? उन्होंने रमन को अपने परिणामों को शोध पेपर की शक्ल में लिखकर लंदन में प्रकाशित होने वाली ''फिलोसोफिकल मैगज़ीन'' को भेज देने की सलाह दी और इसका नतीजा यह हुआ; कि, सन 1906 में, पत्रिका के नवंबर अंक में उनका पेपर प्रकाशित किया गया। इसी के साथ विज्ञान को दिया गया; रमन का यह पहला योगदान था। उस समय उनकी आयु केवल 18 वर्ष थी। इसके पश्चात सन 1907 में भौतिकी में परास्नातक (मास्टर डिग्री) उपाधि प्राप्त की।
वेंकटरमन, उच्च शिक्षण के लिए विदेश नहीं जा पाए। इसीलिए उन्होंने अखिल भारतीय लेखा सेवा प्रतियोगिता परीक्षा [All India Accounts Service Competition Examination] में भाग लिया और उसमें भी प्रथम स्थान प्राप्त किया। इसी के साथ केवल 19 वर्ष की आयु में ही सहायक अकाउंटेंट जनरल के पद पर वित्त विभाग, कोलकाता में उनकी नियुक्ति हुई। इसके पश्चात - 6 मई, 1907 को कृष्णस्वामी अय्यर की सुपुत्री ''लोकसुंदरी'' से रमन का विवाह हो गया।
युवा वैज्ञानिक
दोस्तों जैसे कि हमने आपको बताया - अपने विद्यार्थी जीवन में रमन ने कई महत्वपूर्ण कार्य को पूर्ण किया। जिसमें सन 1906 में उनका ''प्रकाश विवर्तन'' पर पहला शोध पत्र लंदन की '"Philosophical Magazine" नवंबर अंक में प्रकाशित हुआ। जिसका टाइटल था - ''आयताकृत छिद्र के कारण उत्पन्न असीमित विवर्तन पट्टियां'' इस शोध पत्र में उन्होंने इस बात को समझाया था कि -जब प्रकाश की किरणें किसी छिद्र में से अथवा किसी अपारदर्शी वस्तु के किनारे पर से गुजरती हैं तथा किसी पर्दे पर पड़ती हैं, तो किरणों के किनारे पर मंद-तीव्र अथवा रंगीन प्रकाश की पट्टियां दिखाई देती है; और इसे ही ''विवर्तन'' कहा जाता है। विवर्तन गति का सामान्य लक्षण है। इससे पता चलता है कि प्रकाश तरगों में वृद्धि है।
***और क्या? बस! इसी के बाद दुनिया को एक युवा वैज्ञानिक मिल गया।
प्रोफेशन और रिसर्च
रमन को ऐसा लगता था; अपना भाग्य : दोस्तों उन दिनों रमन जैसे प्रतिभाशाली व्यक्ति के लिए भी एक वैज्ञानिक बनने की सुविधा नहीं थी। जैसे कि हमने आपको बताया - इसीलिए, वह भारत सरकार के वित्त विभाग की प्रतियोगिता में बैठे और प्रतियोगिता में प्रथम आए। इसी के साथ जून 1907 में, असिस्टेंट अकाउंटेंट जनरल बनकर कोलकाता चले गए। इस समय रमन को ऐसा प्रतीत हो रहा था। जैसे कि, उनके जीवन में स्थिरता आ गई है। वह अकाउंटेंट जनरल बनेंगे और अच्छा वेतन पाएंगे। बुढ़ापे में ऊँचा पेंशन प्राप्त होगा। लेकिन, कहां जाता है ना दोस्तों - एक इंसान के विचार को बदलने के लिए केवल एक लम्हा ही काफी होता है; बिल्कुल ऐसा ही रमन के साथ हुआ।इस एक लम्हे ने रमन की जिंदगी बदल दी : 1 दिन रमन अपने कार्यालय से घर लौट रहे थे; तभी उन्होंने एक साइन बोर्ड देखा। जिस पर लिखा था; वैज्ञानिक अध्ययन के लिए भारतीय परिषद (इंडियन अशोसिएशन फार कल्टीवेशन आफ़ साईंस)। यह पढ़ते ही मानों - रमन को बिजली का करंट छू गया हो। वह जल्दी से परिषद कार्यालय में पहुंच गए। वहां पहुंच कर उन्होंने अपना परिचय दिया और परिषद की प्रयोगशाला में प्रयोग करने की आज्ञा प्राप्त की और यहीं से उनके वैज्ञानिक जीवन की शुरुआत हुई।
तबादला और इस दौरान अनुसंधान : तत्पश्चात उनका तबादला रंगून तथा उसके बाद नागपुर को हुआ। अब रमन ने अपने घर में ही प्रयोगशाला बना ली थी और समय मिलने पर उसी प्रयोगशाला में अपने प्रयोग करते रहते थे। सन 1911 में, उनका तबादला एक बार फिर कोलकाता हो गया। और एक बार फिर परिषद की प्रयोगशाला में प्रयोग करने का अवसर उन्हें प्राप्त हुआ। यह निर्विघ्न (बिना किसी रुकावट) सन 1917 तक यूं ही चलता रहा। इस अवधि में उनके अंशकालिक अनुसंधान का क्षेत्र था - ध्वनि के कम्पन और कार्यों का सिद्धान्त।
भौतिकी कोश में एकमात्र भारतीय लेखक : दोस्तों, डॉ.चंद्रशेखर वेंकटरमन को वाद्यों की भौतिकी का ज्ञान इतना गहरा था; कि - सन 1927, में जर्मनी में प्रकाशित 20 खण्डों वाले भौतिकी विश्वकोश के आठवें खंड के लिए वाद्य-यंत्रों की भौतिकी का लेख इन्हीं से तैयार करवाया गया। दोस्तों हमें इस बात पर गर्व होना चाहिए कि - संपूर्ण भौतिकी कोश में चंद्रशेखर वेंकटरमन ही ऐसे लेखक हैं; जो भारत से हैं (अन्य सभी जर्मन के हैं)।
सरकारी पद को दिया त्यागपत्र : सन 1917 में, कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्राध्यापक का पद बना; तो वहां के कुलदीप, आशुतोष मुखर्जी द्वारा उसे स्वीकार करने का आमंत्रण रमण को प्राप्त हुआ। रमन ने उनके आमंत्रण को स्वीकार करते हुए; अपने उच्च सरकारी पद को त्यागपत्र दे दिया। इसी से यह अनुमान लगाया जा सकता है; कि भौतिकी शास्त्र के लिए रमन क्या कुछ कर सकते थे?
कलकत्ता विश्वविद्यालय : यहां कुछ वर्षों तक रमन ने वस्तुओं में प्रकाश के चलने का अध्ययन किया। इनमें उन्हें पता चला - किरणों का पूर्ण समूह बिल्कुल सीधा नहीं चलता है उसका कुछ भाग अपनी राह बदल कर बिखर जाता है।
रमन प्रभाव की खोज के लिए प्रेरणा : सन 1921 में वेंकटरमन को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय इंग्लैंड से कांग्रेस में भाग लेने के लिए निमंत्रण प्राप्त हुआ। वहां उनकी मुलाकात लार्ड रदरफोर्ड, जे. जे. थामसन जैसे विश्वविख्यात वैज्ञानिकों से हुई। इंग्लैंड से भारत लौटते समय अनपेक्षित घटना के कारण ''रमन प्रभाव'' की खोज के लिए प्रेरणा मिली।
क्या थी वह अनपेक्षित घटना? : जी हां! हम आपको वह अनपेक्षित घटना जरूर बताएंगे। दरअसल, जब वह ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, इंग्लैंड से वापस भारत पानी के जहाज से लौट रहे थे। तब रास्ते भर वह भूमध्य समुद्र के जल के रंग को ध्यान पूर्वक देखते जा रहे थे; तथा समुद्र के नीलेपन को निहार रहे थे। उन्हें समुद्र के नीले रंग के बारे में जानने की उत्सुकता हो रही थी। उनके वैज्ञानिक मस्तिष्क में कई प्रश्न उमड रहे थे। वह सोचने लगे - आखिर क्यों? समुद्र का रंग नीला होता है। कोई और रंग का क्यों नहीं है? कहीं सागर आकाश के प्रतिबिंब के कारण तो नीला नहीं दिख रहा। इन्हीं सवालों में डूबे रहते रहते उन्होंने समुद्री यात्रा के दौरान सोचा कि शायद सूर्य का प्रकाश जब पानी में प्रवेश करता है; तो वह नीला हो जाता है। यही वह कारण था की - डॉक्टर चंद्रशेखर वेंकटरमन ने ''रमन प्रभाव'' की खोज की।
***दोस्तों यह एक अनपेक्षित घटना इसलिए है; क्योंकि, आमतौर पर एक सामान्य व्यक्ति कभी भी ऐसे सवाल नहीं करता। लेकिन, दोस्तों इस वैज्ञानिक मस्तिष्क में ऐसे ऐसे सवाल उठते हैं; जिनकी कल्पना भी हम नहीं कर सकते और उस दिन वेंकटरमन के साथ यही हुआ था।
रमन प्रभाव
दोस्तों आपके दिमाग में यह सवाल जरूर फुदक रहा होगा; कि - आखिर यह रमन प्रभाव क्या है? और भौतिकी की दुनिया में इसका कितना प्रभाव है? आइए बताते हैं।रमन प्रभाव के अनुसार जब एक तरंगीय प्रकाश यानि एक ही आवृत्ति के प्रकाश को विभिन्न रसायनिक द्रवों से जब गुजारा जाता है, तब प्रकाश के एक सूक्ष्म भाग की तरंग लंबाई मूल प्रकाश के तरंग लंबाई से विभिन्न होती है। तरंग लंबाई में यह विभिन्नता ऊर्जा के आदान प्रदान के कारण होता है। जब ऊर्जा कम होती है; तब तरंग लंबाई अधिक हो जाती है और जब ऊर्जा बढ जाती है; तब तरंग-लंबाई कम हो जाता है। यह ऊर्जा सदैव एक निश्चित मात्रा में कम ज्यादा होती रहती है और इसी कारण तरंग-लंबाई में भी परिवर्तन हमेशा निश्चित मात्रा में होता है।
दोस्तों दरअसल, प्रकाश की किरणें असंख्य सूक्ष्म कणों से मिलकर बनी होती हैं; यह तो हमें पता ही है। तो इन कणों को वैज्ञानिक भाषा में फोटोन कहा जाता है। जोकि, प्रकाश की दोहरी प्रकृति ही तरंगों तथा कणों / फोटोनों की तरह व्यवहार करती हैं।
रमन प्रभाव ने फोटोनों के ऊर्जा की आन्तरिक परमाण्विक संरचना को समझने में विशेष सहायता की है। किसी भी पारदर्शी द्रव में एक ही आवृत्ति वाले प्रकाश को गुजारकर ''Raman spectrum'' प्राप्त किया जा सकता है। प्रत्येक पारदर्शी द्रव को Spectrograph में प्रवेशित करने के बाद वैज्ञानिकों को यह पता चला कि - किसी भी द्रव का रमन Spectrum विशिष्ट होता है, मतलब किसी अन्य द्रव का Spectrum पहले जैसा नहीं होता है। इसके जरिये हम किसी भी पदार्थ की आंतरिक संरचना के बारे में भी जान सकतें हैं।
***दोस्तों उन दिनों भौतिकी में यह एक विस्मयकारी खोज थी। वेंकटरमन की इस खोज ने क्वांटम भौतिकी के क्षेत्र में भी अत्यंत क्रांतिकारी परिवर्तन लाया। रमन प्रभाव की खोज वेंकटरमन के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी।
उपलब्धियां तथा सम्मान
- सन 1930 में, प्रकाश के प्रकीर्णन और रमण प्रभाव की खोज के लिए उन्हें भौतिकी के क्षेत्र में प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार दिया गया।
- सन 1954 में, भारत रत्न से सम्मानित हुए।
- सन 1957 में लेनिन शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- भारत में प्रतिवर्ष 28 फ़रवरी 1928 को ''राष्ट्रीय विज्ञान दिवस'' के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन ''रमन प्रभाव'' की खोज हुई थी।
लेख, पुस्तक और शोध प्रकाशन
CV Raman - Articles, Books & Research Publications | ||
---|---|---|
Sr.No | Year | Order Of Publication |
01 | 1913 | Some Acoustical Observations, Bull. Indian Assoc. Cultiv. Sci., 1913 |
02 | 1914 |
|
03 | 1915 |
|
04 | 1916 |
|
05 | 1917 |
|
06 | 1918 |
|
07 | 1919 |
|
08 | 1920 |
|
09 | 1921 |
|
10 | 1922 |
|
11 | 1926 | The Subjective Analysis of Musical Tones, Nature (London), 1926 |
12 | 1927 | Musical Instruments and Their Tones |
13 | 1928 |
|
14 | 1935 |
|
15 | 1936 |
|
16 | 1937 | Acoustic Spectrum of Liquids, Nature (London), 1937 (with B.V. Raghavendra Rao) |
17 | 1938 | Light Scattering and Fluid Viscosity, Nature (London), 1938 (with B.V. Raghavendra Rao) |
18 | 1948 | Aspects of Science, 1948 |
19 | 1951 | The New Physics: Talks on Aspects of Science, 1951 |
20 | 1953 | The structure and optical behaviour of iridescent opal, Proc. Indian. Acad. Sci. A38 1953 (with A. Jayaraman) |
21 | 1959 | Lectures on Physical Optics, 1959 |
निधन : वर्ष 1970, 21 नवम्बर को सर. डॉ. चंद्रशेखर वेंकटरमन (सी. वी. रमन) का 82 वर्ष की आयु मे देहांत हो गया। हां! वह आज हमारे साथ नहीं है; लेकिन, उनका आविष्कार ''रमन प्रभाव'' हमेशा हमें उनकी याद दिलाता रहेगा।
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