चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की जीवनी हिंदी में (Biography of Chakravarti Rajagopalachari in Hindi) : चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (जन्म 10 दिसम्बर 1878 - 25 दिसम्बर 1972 [उम्र 94 वर्ष]) : स्वतंत्र भारत के द्वितीय गवर्नर जनरल और प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल 'चक्रवर्ती राजगोपालाचारी' जिन्हें हम 'राजाजी' के नाम से भी जानते हैं। वह वकील, लेखक, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक भी थे। 10 अप्रैल 1952 से 13 अप्रैल 1954 तक वह मद्रास के मुख्यमंत्री रहे। इसी के साथ दक्षिण भारत के कांग्रेस के प्रमुख नेता थे। लेकिन बाद में वह कांग्रेस के प्रखर विरोधी बन गए तथा स्वतंत्रता स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की। उन्होंने दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए बहुत कार्य किया। भारतीय राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले राजाजी (चक्रवर्ती राजगोपालाचारी) को सन 1954 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। आज की इस पोस्ट के जरिए हम चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की जीवनी पर प्रकाश डालने वाले हैं।
***दोस्तों को बता दें - चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, महात्मा गांधी के समधी थे। (राजाजी की पुत्री लक्ष्मी का विवाह गांधीजी के सबसे छोटे पुत्र देवदास गांधी से हुआ था।) आइए अब हम राजाजी के आरंभिक जीवन के बारे में जानते हैं।
बचपन से ही राजगोपालाचारी पढ़ने लिखने में बहुत तेज थे। इसी के साथ देशभक्ति और समाज सेवा की भावना भी उनमें स्वाभाविक रूप से विद्यमान थी। वह जिन दिनों वकालत कर रहे थे, उन्हीं दिनों वह स्वामी विवेकानंद जी के विचारों से अत्यंत प्रभावित हुए और वकालत के साथ साथ समाज सुधार के कार्यों में भी अपनी उपस्थिति दिखाने में रुचि लेने लगे। उनके समाजसेवी कार्यों से प्रभावित होकर लोगों ने उन्हें सेलम की म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन का अध्यक्ष चुन लिया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने नागरिकों की अनेक समस्याओं का समाधान तो किया ही साथ ही तत्कालीन समाज में उपस्थित सामाजिक बुराइयों का भी जमकर विरोध किया। जो कहा जाता है केवल उन्हीं के जैसे हिम्मती व्यक्ति के बस की बात थी। सेलम में पहली सहकारी बैंक की स्थापना करने का श्रेय राजगोपालाचारी को ही जाता है।
***दोस्तों जैसे कि हम सभी ने जाना की - चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, महात्मा गांधी के समधी थे। आइए, हम आपको गांधी जी के साथ बेटे उनके कुछ पलों को बांटते हैं।
जेल से छूटने के बाद राजगोपालाचारी ने वकालत के साथ अपनी तमाम सुख-सुविधाओं की जिंदगी को त्याग दिया और पूर्ण रूप से देश के स्वतंत्रता संग्राम को अपना जीवन समर्पित कर दिया। सन 1921 में गांधी जी ने नमक सत्याग्रह की शुरुआत की। बिल्कुल इसी वर्ष वह कांग्रेस के सचिव भी चुने गए। इस आंदोलन के तहत उन्होंने जगजागरण के लिए पदयात्रा की और वेदयासम के सागर तट पर नमक कानून का उल्लंघन किया। जिसका परिणाम यह निकला कि उन्हें पुनः गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी देश की राजनीति और कांग्रेस में इतना ऊंचा कद प्राप्त कर चुके थे कि - गांधीजी जैसे वरिष्ठ नेताओं के साथ उनकी बातचीत होती और प्रत्येक कार्य के लिए उनसे उनकी राय पूछी जाती।
गांधीजी स्पष्ट रूप से कहते थे कि -
हालांकि ऐसे कई अवसर आए जब चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, गांधीजी और कांग्रेस के विरोध में भी खड़े हो गए। लेकिन, इसे भी उनकी दूरदर्शिता उनकी कूटनीति का ही एक अंग समझकर उसका समर्थन किया गया।
गांधीजी और राजाजी के संबंध तब और भी मजबूत हो गए। जब सन 1933 में गांधी जी के पुत्र देवदास का विवाह राजा जी की पुत्री लक्ष्मी के साथ संपन्न हो गया। अब राजाजी और गांधीजी समधी हो गए थे।
यह मतभेद रुका नहीं बढ़ता चला गया। परिणाम - राजा जी ने कांग्रेस की कार्यकारिणी की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद सन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई। तब भी वह अन्य कांग्रेसी नेताओं के साथ गिरफ्तार होकर जेल नहीं गए। इसका यह अर्थ बिल्कुल नहीं था कि - वह देश के स्वतंत्रता संग्राम या कांग्रेस के विरुद्ध हो गए थे। अपने सिद्धांतों और कार्यशैली के अनुसार राजा जी स्वतंत्रता संग्राम और कांग्रेस से निरंतर जुड़े रहे। उनकी राजनीति पर गहरी पकड़ थी।
1942 के इलाहाबाद कांग्रेस अधिवेशन में उन्होंने देश के विभाजन को स्पष्ट सहमति प्रदान की। हालांकि, अपने इस मत पर उन्हें आम जनता और कांग्रेस का बहुत विरोध सहना पड़ा, परन्तु उन्होंने इसकी परवाह नहीं की। इस बात का इतिहास गवाह है की - सन 1942 में राजा जी ने देश के विभाजन को सभी के विरोध के बाद भी स्वीकार किया और सन 1947 में वही हुआ। यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि - कांग्रेस के सभी नेता राजाजी के दूरदर्शिता और बुद्धिमत्ता का लोहा मानते थे। कांग्रेस से अलग होने पर भी यह महसूस नहीं किया गया कि वह कांग्रेस से अलग है।
***दोस्तों, इसके कुछ वर्षों के बाद ही कांग्रेस की तत्कालीन नीतियों के विरोध में उन्होंने मुख्यमंत्री पद और कांग्रेस दोनों को ही छोड़ दिया और अपनी पृथक् स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की।
***अंततः अपनी वेशभूषा से भी भारतीयता के दर्शन कराने वाले इस महापुरुष का निधन 28 दिसंबर 1972 को हो गया।
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Biography of Chakravarti Rajagopalachari- Technical Prajapati |
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की जीवनी
***दोस्तों को बता दें - चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, महात्मा गांधी के समधी थे। (राजाजी की पुत्री लक्ष्मी का विवाह गांधीजी के सबसे छोटे पुत्र देवदास गांधी से हुआ था।) आइए अब हम राजाजी के आरंभिक जीवन के बारे में जानते हैं।
आरंभिक जीवन
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का जन्म 10 दिसंबर, 1878 में दक्षिण भारत (तमिलनाडु [मद्रास]) के सेलम जिले के होसूर के पास 'धोरापल्ली' नामक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम नलिन चक्रवर्ती जो एक वैष्णव ब्राह्मण थे। सेलम के न्यायालय में न्यायाधीश के पद पर कार्यरत थे। राजगोपालाचारी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा अपने गांव के एक छोटे से स्कूल से प्राप्त की। बाद में उन्होंने बेंगलुरु के सेंट्रल कॉलेज से हाई स्कूल की पढ़ाई और इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इसके पश्चात उन्होंने मद्रास के प्रेसिडेंसी कॉलेज से बी.ए. तथा वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण करके वकालत की डिग्री पाने के बाद सेलम में ही वकालत करने लगे। उनकी योग्यता और प्रतिभा को देखते हुए लोग उनकी गणना वहां के प्रमुख वकीलों के साथ करने लगे।बचपन से ही राजगोपालाचारी पढ़ने लिखने में बहुत तेज थे। इसी के साथ देशभक्ति और समाज सेवा की भावना भी उनमें स्वाभाविक रूप से विद्यमान थी। वह जिन दिनों वकालत कर रहे थे, उन्हीं दिनों वह स्वामी विवेकानंद जी के विचारों से अत्यंत प्रभावित हुए और वकालत के साथ साथ समाज सुधार के कार्यों में भी अपनी उपस्थिति दिखाने में रुचि लेने लगे। उनके समाजसेवी कार्यों से प्रभावित होकर लोगों ने उन्हें सेलम की म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन का अध्यक्ष चुन लिया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने नागरिकों की अनेक समस्याओं का समाधान तो किया ही साथ ही तत्कालीन समाज में उपस्थित सामाजिक बुराइयों का भी जमकर विरोध किया। जो कहा जाता है केवल उन्हीं के जैसे हिम्मती व्यक्ति के बस की बात थी। सेलम में पहली सहकारी बैंक की स्थापना करने का श्रेय राजगोपालाचारी को ही जाता है।
***दोस्तों जैसे कि हम सभी ने जाना की - चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, महात्मा गांधी के समधी थे। आइए, हम आपको गांधी जी के साथ बेटे उनके कुछ पलों को बांटते हैं।
गांधी जी का सान्निध्य
सन 1915 में गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौट कर आए और आते ही देश की स्वतंत्रता संग्राम को गति बहाल करने में जुट गए थे। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी भी देश के हालात से अनजान नहीं थे। वह अदालत में उत्कर्ष पर थे। सन 1919 में गांधीजी ने रॉयल एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की और इसी समय राजगोपालाचारी, गांधी जी के संपर्क में आए। उनके राष्ट्रीय आंदोलन के विचारों से वह काफी प्रभावित हुए। गांधी जी ने पहली भेंट में उनकी प्रतिभा को पहचान लिया और उनसे मद्रास में सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व करने का आवाहन किया। उन्होंने पूरे जोश में मद्रास सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व स्वीकार कर नेतृत्व किया और गिरफ्तार होकर जेल चले गए।जेल से छूटने के बाद राजगोपालाचारी ने वकालत के साथ अपनी तमाम सुख-सुविधाओं की जिंदगी को त्याग दिया और पूर्ण रूप से देश के स्वतंत्रता संग्राम को अपना जीवन समर्पित कर दिया। सन 1921 में गांधी जी ने नमक सत्याग्रह की शुरुआत की। बिल्कुल इसी वर्ष वह कांग्रेस के सचिव भी चुने गए। इस आंदोलन के तहत उन्होंने जगजागरण के लिए पदयात्रा की और वेदयासम के सागर तट पर नमक कानून का उल्लंघन किया। जिसका परिणाम यह निकला कि उन्हें पुनः गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी देश की राजनीति और कांग्रेस में इतना ऊंचा कद प्राप्त कर चुके थे कि - गांधीजी जैसे वरिष्ठ नेताओं के साथ उनकी बातचीत होती और प्रत्येक कार्य के लिए उनसे उनकी राय पूछी जाती।
गांधीजी स्पष्ट रूप से कहते थे कि -
महात्मा गांधी :
राजा जी ही मेरे सच्चे अनुयायी हैं।
हालांकि ऐसे कई अवसर आए जब चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, गांधीजी और कांग्रेस के विरोध में भी खड़े हो गए। लेकिन, इसे भी उनकी दूरदर्शिता उनकी कूटनीति का ही एक अंग समझकर उसका समर्थन किया गया।
असहयोग आंदोलन
सन 1930-31 में असहयोग आंदोलन की शुरुआत की गई। राजा जी ने इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। वह जेल भी गए, लेकिन कुछ मुद्दों पर कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं के विरोध में बिना डरे खड़े हुए। वह अपने सिद्धांतों के आगे किसी से भी किसी प्रकार के समझौते के लिए तैयार नहीं होते थे यह उनका स्वभाव था। वह अकारण ही अपने सिद्धांतों पर नहीं अड़ते थे। लगभग जिन समस्याओं पर अन्य नेतागण उनका विरोध करते थे। बाद में, वह सहज रूप से उन्हीं समस्याओं पर राजाजी के दृष्टिकोण से सहमत हो जाते थे। राजाजी की सूझबूझ और राजनीति कुशलता का एक उदाहरण दिया जाए तो - सन 1931-32 में जब हरिजनों के पृथक मताधिकार को लेकर गांधी जी और बाबासाहेब आंबेडकर के बीच मतभेद हो गया था। तब एक तरफ जहां गांधी जी इस संदर्भ में अनशन पर बैठ गए। वहीं अंबेडकर जी भी पीछे हटने के लिए तैयार नहीं थे। उस वक्त राजाजी ने उन दोनों के बीच बड़ी ही चतुराई से समझौता करा दिया और विवाद को शांत कराया था।राजाजी और गांधी जी का / के संबंध
राजाजी और गांधीजी के निकटता का पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि - जब गांधी जी जेल में होते थे। तब उनके द्वारा संपादित पत्र 'यंग इंडिया' का संपादन राजाजी ही करते थे। जब कभी गांधीजी से पूछा जाता कि - जब आप जेल में होते हैं तब बाहर आप का उत्तराधिकारी किसे समझा जाए? तब गांधी जी बड़े ही सहज भाव से कहते थे - 'राजाजी और कौन?'गांधीजी और राजाजी के संबंध तब और भी मजबूत हो गए। जब सन 1933 में गांधी जी के पुत्र देवदास का विवाह राजा जी की पुत्री लक्ष्मी के साथ संपन्न हो गया। अब राजाजी और गांधीजी समधी हो गए थे।
मुख्यमंत्री
राजगोपालाचारी के नेतृत्व में कांग्रेस ने सन 1937 में हुए कॉंसिलो के चुनाव में विजय प्राप्त की। उन्हें मद्रास का मुख्यमंत्री बनाया गया। ब्रिटिश सरकार और कांग्रेस के बीच मतभेद होने के चलते कांग्रेस की सभी सरकारें सन 1930 में भंग कर दी गई। राजा जी ने भी अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। इसी समय दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत हुई। कांग्रेस तथा राजाजी के बीच मतभेद हो गया। इस बार गांधीजी के विरोध में राजा जी खड़े थे। ब्रिटिश सरकार को दूसरे महायुद्ध में मात्र नैतिक समर्थन दिया जाए, यह गांधीजी का विचार था। लेकिन, राजा जी का कहना था कि - भारत को पूर्ण स्वतंत्र देने की शर्त पर ब्रिटिश सरकार को हर मुमकिन सहयोग दिया जाएगा।यह मतभेद रुका नहीं बढ़ता चला गया। परिणाम - राजा जी ने कांग्रेस की कार्यकारिणी की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद सन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई। तब भी वह अन्य कांग्रेसी नेताओं के साथ गिरफ्तार होकर जेल नहीं गए। इसका यह अर्थ बिल्कुल नहीं था कि - वह देश के स्वतंत्रता संग्राम या कांग्रेस के विरुद्ध हो गए थे। अपने सिद्धांतों और कार्यशैली के अनुसार राजा जी स्वतंत्रता संग्राम और कांग्रेस से निरंतर जुड़े रहे। उनकी राजनीति पर गहरी पकड़ थी।
1942 के इलाहाबाद कांग्रेस अधिवेशन में उन्होंने देश के विभाजन को स्पष्ट सहमति प्रदान की। हालांकि, अपने इस मत पर उन्हें आम जनता और कांग्रेस का बहुत विरोध सहना पड़ा, परन्तु उन्होंने इसकी परवाह नहीं की। इस बात का इतिहास गवाह है की - सन 1942 में राजा जी ने देश के विभाजन को सभी के विरोध के बाद भी स्वीकार किया और सन 1947 में वही हुआ। यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि - कांग्रेस के सभी नेता राजाजी के दूरदर्शिता और बुद्धिमत्ता का लोहा मानते थे। कांग्रेस से अलग होने पर भी यह महसूस नहीं किया गया कि वह कांग्रेस से अलग है।
राजनीतिक पद
- सन 1946 जब देश की अंतरिम सरकार बनी। राजाजी को केंद्र सरकार में उद्योग मंत्री बनाया गया।
- सन 1947 जब देश को पूर्ण स्वतंत्र प्राप्त हुआ। राजाजी को बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया।
- सन 1948 वह स्वतंत्र भारत के 'प्रथम गवर्नर जनरल' जैसे अति महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त किए गए।
- सन 1950 में वह एक बार फिर केंद्रीयमंडल के लिए गए इसी वर्ष सरदार वल्लभ भाई पटेल की मृत्यु होने की वजह से राजाजी को केन्द्रीय गृह मंत्री बनाये गये।
- सन 1952 के आम चुनावों में वह लोकसभा सदस्य बने और मद्रास के मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए।
***दोस्तों, इसके कुछ वर्षों के बाद ही कांग्रेस की तत्कालीन नीतियों के विरोध में उन्होंने मुख्यमंत्री पद और कांग्रेस दोनों को ही छोड़ दिया और अपनी पृथक् स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की।
सम्मान
भारतीय राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले 'चक्रवर्ती राजगोपालाचारी' को सन 1954 में 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया। वह अत्यंत विद्वान तथा उनमें अद्भुत लेखन की प्रतिभा थी, जो गहराई और तीखापन उनके बुद्धिचातुर्य में था वही उनके लेखन में भी था। वह तमिल और अंग्रेजी के एक बहुत अच्छे लेखक थे। गीता और उपनिषदों पर उनकी टीकाएं अत्यंत प्रसिद्ध है। राजा जी द्वारा रचित 'चक्रवर्ती तिरुगमन' जो एक गद्द रामायण कथा है, के लिए सन 1958 में साहित्य अकादमी पुरस्कार [तमिल भाषा के लिए] से सम्मानित किया गया। उनकी लिखी अनेक कहानियाँ उच्च स्तरीय थीं। 'स्वराज्य' नामक पत्र उनके लेख निरंतर प्रकाशित होते रहते थे। इसके अतिरिक्त नशाबंदी और स्वदेशी वस्तुओं विशेषकर खादी के प्रचार प्रसार में उनका योगदान महत्त्वपूर्ण माना जाता है।***अंततः अपनी वेशभूषा से भी भारतीयता के दर्शन कराने वाले इस महापुरुष का निधन 28 दिसंबर 1972 को हो गया।
हमें उम्मीद है दोस्तों - हमारे द्वारा दी गई है जानकारी आप सभी दोस्तों को बेहद पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर जरुर शेयर करेंगे। साथ ही साथ कमेंट बॉक्स में दी गई जानकारी के बारे में अपनी राय जरूर देंगे क्योंकि, दोस्तों पता है ना कमेंट बॉक्स आपका ही है।
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